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________________ कपड़े बदल गये हजारों वर्ष पहले धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा था“धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायो" -महाभारत धर्म का तत्त्व गुफा में छिपा रहता है। आज को परिस्थितियों में यह बात सत्य अनुभव हो रही है । आज धर्म के नाम पर अधर्म की पूजा हो रही है, सत्य के नाम पर असत्य की जय जयकार से आकाशपाताल गूंज रहे हैं । करुणा और सरलता के नाम पर धूर्तता के आडम्बर पूर्ण अभिनय पर संसार मुग्ध हो रहा है । और इतना ही नहीं, अधर्म अपनी झूठी करतूतों से धर्म को तिरस्कृत कर रहा है । असत्य अपनी चकाचौंध से सत्य को निस्तेज बनाने का प्रयत्न कर रहा है और मनुष्य को आँखों पर पर्दा गिर रहा है कि वह इनके अलग-अलग रूपों और मुखौटों की सचाई को जान भी नहीं पा रहा है । इन स्थितियों पर विचार करते हुए एक Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003199
Book TitlePratidhwani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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