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________________ प्रतिध्वनि के रक्त-माँस की बलि वाहने वाला। एक रूप है-सर्वशक्तिमान्-अर्थात् जैसा चाहे वैसा करने वालामनमोजी! अथवा जिसकी लाठी उसकी भैंस का सिद्धान्तवादी।एक ईश्वर है-जो मनुष्यों के रत्तो-रत्ती भर पापों का हिसाव रखता है और उन्हें निर्दयता पूर्वक दण्ड भी देता है, वह न्यायाधीश है । एक रूप है-दयालु ! जगत्पिता ! बड़े से बड़ा पापी भी भयकर जल्म करके उसकी शरमा में पहुँच गया तो वह उसे माफ कर देता है । एक ईवर मनुष्यों के दःख और पीड़ाओं का नाश करने स्वयं अवतार धारणा करता है, तो एक इस धरती पर स्वयं न आकर अपने दूत अथवा पुत्र का भेजकर ही वह काम करा देता है। एक ईश्वर है--जो कयामत के दिन सब मुर्दो को कब्र से बुलाकर उनके न्याय-अन्याय का फैसला करता है।" ईश्वर की इन विचित्र एवं विभिन्न कल्पनाओं का मूल है-मानव मन की परिस्थितियाँ, कल्पनाएं और आवश्यकताएं । जिसे, जिस समय जिस शक्ति की अपेक्षा हुई, उसने ईश्वर के उसी रूप की कल्पना करली । संत तुलसीदास जी के शब्दों में जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ! एक अरबी लोक कथा है.---- एक बार बिल्लियों का एक झंड एक ऊँचे पहाड़ को चोटी पर एकत्र हुआ। एक भारी भरकम भूरी बिल्ली बड़े Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003199
Book TitlePratidhwani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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