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________________ लम्बा कद, गौर वर्ण, भव्य ललाट, हँसते होठ, खिले लोचन शांत और तेजोद्दीप्त मुखमुद्रा, इन सभी ने मिलकर ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण किया था जिसे लोग दानवीर सेठ हस्तीमल जी मेहता के नाम से पहचानते थे। जितना उनका बाह्य व्यक्तित्व आकर्षक था, उतना ही उनका आन्तरिक जीवन भी मन-मोहक था। वे प्रकृति से सरल, स्वभाव से कोमल, और हृदय से उदार थे। वे केवल गरजनेवाले मेघ ही नहीं, बरसनेवाले मेघ थे और जब बरसते थे तो जमकर बरसते थे ।उन्होंने अपनी छोटी उम्र में अत्यधिक उदारता के साथ दानदिया था । अनाथ, विधवाएँ और गरीब छात्रों को उन्होंने गुप्तरूप से सहायताएं दी थीं। कब ? किसे ? कितनी सहायता दी, उसका पता उनके अतिरिक्त घर के किसी सदस्य को नहीं होता था। वे उसे दान नहीं, किन्तु अपना कर्तव्य समझते थे । किसी भी प्राणी को कष्ट में देखकर उनका हृदय दया से द्रवित हो जाता था। उनका जन्म राजस्थान की वीरभूमि अरावली पहाड़ की तलहटी में बसे हुए सादड़ी (मारवाड़) में हुआ, । जहाँ पर स्थानकवासी मुनियों का विराट साधु सम्मेलन सन् १६५२ में हुआ और श्रमणसंघ का निर्माण हुआ। आपके पूज्य पिता श्री का नाम सेठ सागरमल जी था और मातेश्वरी का नाम राधाबाई था । आपके ज्येष्ठ भ्राता का नाम पुखराज जी है । जो पूना (महाराष्ट्र) के लब्ध प्रतिष्ठित व्यापारियों में से हैं। सादडीनिवासी बालचन्दजी तलेसरा की सुपुत्री धर्मानुरागिणी शान्ताबाई के साथ आपका विवाह सम्पन्न हुआ। आपके पाँच Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003199
Book TitlePratidhwani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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