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________________ अमिट रेखाएं रेखाएं चमक उठी। सेठ के सामान में कहीं न कहीं धन अवश्य है। संध्या होते-होते वे दूसरी अगली धर्मशाला जा ठहरे। पहले दिन की भाँति ही ठग निद्रा का नाटक कर सो गया। जब सेठ को गहरी निद्रा आई तब वह उठा और बड़ी ही सावधानी से उसने सेठ की जेबें, बिस्तर, व सामान टटोलना प्रारंभ किया, जब घंटों तक मेहनत करने पर भी उसे कुछ नहीं मिला तो उसे विश्वास हो गया कि सेठ के पास कुछ भी सम्पत्ति नहीं है, केवल मुझे धोखा देने के लिए अपनी बढ़ाई बघारता है। मैं इस धूर्त के साथ कैसे फंस गया। तीसरे दिन कुछ चले ही थे कि सेठ का गांव आ गया ठग को लेकर अपने घर पहुँचा, भोजन आदि से निवृत्त होने पर उसने अपने साथ का बिस्तर खोला. बिस्तर में से एक गठडी निकाली जिसमें पांच हजार स्वर्ण मुद्राएं थीं। पांच मुद्राएं उसको देते हए कहा-अभी तुम्हारा गाँव दूर है, खाने का सामान ले लेना ओर साथ ही अपने बाल-बच्चों के लिए भी कुछ वस्तुएं खरीद लेना । ठग निर्मिमेष दृष्टि से उस गठरी को देखने लगा, उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह क्या हो गया, जिस गठरी को मैं दो रात से ढूंढता रहा, मुझे नहीं मिली, आज यह कहां से आ गई ? ठगसेठजी ! आप मुझे नहीं पहचानते हैं कि मैं कौन हैं। आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि दूसरों के धन का अपहरण करना ही मेरा एक मात्र व्यवसाय है। आपके Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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