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________________ १६ आनन्द कहां ! एक सेठ विदेश से धन कमाकर अपने घर की ओर आ रहा था, मार्ग में उसे एक ठग मिला, उसने सेठ से प्रश्न किया, आप कहां जा रहे हैं । उत्तर में - सेठ ने कहा - मैं धन कमाने के लिए विदेश गया था, वहां पर बारह वर्ष रहा और जितना भाग्य में लिखा था उतना धन कमाकर घर लौट रहा हूँ । धन की बात सुनकर ठग के मुंह में पानी आ गया, उसने सोचा, किसी उपाय से सेठ के पास के धन को ले लेना चाहिए, फिर ऐसा सुनहरा अवसर हाथ न लगेगा । ठग ने मधुर शब्दों में सेठ से कहा - बन्धुवर । आप जिस ग्राम को जा रहे हो उससे दस मील आगे ही मेरा गांव है, मैं भी वहीं जा रहा हूँ । तुम्हारा साथ मिल गया, बड़ी प्रसन्नता है । वार्तालाप करते हुए मार्ग आसानी से कट जायेगा । सेठ भी यही चाहता था कि रास्ते में कोई साथी मिल जाय तो अच्छा है मीठी बातें करते हुए दोनों आगे बढ़ रहे थे । सूर्य अस्ताचल की ओर तेजी से बढ़ रहा था। ठग Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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