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________________ अमिट रेखाए अत्यधिक आग्रह पर युवक को बीस हजार मुद्राएं लेनी ही पड़ी। एक दिन रुक कर युवक आगे बढ़ा बीस हजार मुद्राएं उसके साथ ही थीं। एक योजन मार्ग पार करने पर उसे सन्यासी की कुटिया मिली। सन्यासी ने आते ही पूछाबताओ मेरी समस्या का क्या समाधान लाये। युवक ने कहा - सन्यासी बनने के पूर्व आप राजा थे, आपने सन्यास तो ग्रहण किया पर मन में यह संशय बना रहा कि भविष्य में क्या होगा, इस दृष्टि से सवा करोड़ का कीमती हीरा अपने पास छुपा रखा है, उस हीरे के कारण आपकी साधना में एकाग्रता नहीं आ पाती है। ___ सन्यासी ने सुना, अध्यात्म की भूख उसमें तीव्र लगी हुई थी। हीरे की ममता छूट गई। उसने उसी समय हीरे को निकाल कर उसे दे दिया। और स्वयं ध्यान में दत्तचित्त हो गया। युवक आगे बढ़ा और तीसरे दिन बुढिया के घर पर पहुंचा । बुढिया उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। बेटा! ज्ञानी पुरुष से मेरी पुत्री के सम्बन्ध में पूछा क्या ? युवक ने कहा-मां तुम्हारी बात को मैं किस प्रकार विस्मृत कर सकता था। ज्ञानी पुरुष के संकेतानुसार तुम्हारा मनोरथ अभी पूर्ण हो जायेगा, अपनी पुत्री को शीघ्र ही यहां बुला लाओ । बुढिया ने शीघ्र पुत्री को बुलाया। युवक ने सवा करोड़ की कीमत का चमचमाता हीरा उसके हाथ पर रखा। वह उस बेशकीमती हीरे को पहचान गई वह Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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