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________________ १२ अमिट रेखाए उन्होंने पुनः निवेदन किया, भगवन् ! मुझे अपनी स्खलना स्मरण नहीं आ रही है, कृपया आप ही बतायें । सात्विक रोष प्रकट करते हुये आचार्य भद्रबाहु ने कहा - "पाप करके भी उसका स्मरण नहीं हो रहा है उसी क्षण मुनि स्थूलभद्र को अपना सिंह का रूप स्मरण हो आया । वे आचार्य देव के चरणों में गिर पड़े - भगवन् ! क्षमा प्रार्थी हूं, मेरे से अविनय हुआ है । भविष्य में कभी भी ऐसा न होगा । भद्रबाहु ने कड़क कर कहा ज्ञान और साधना का किञ्चितमात्र भी अभिमान क्षम्य नहीं होता । जितना ज्ञान तुझे मिलना था मिल गया, अब नया ज्ञान नहीं मिल सकता । मुनि स्थूलभद्र ने बहुत ही अनुनय-विनय किया, पर आचार्य प्रसन्न न हुए । उन्होंने संघ से प्रार्थना की । संघ एकत्र हुआ । आचार्य भद्रबाहु ने संघ से कहा- जो भूल मुनि स्थूलभद्र ने की है वैसी भूल भविष्य के साधु मन्द बुद्धि और आडम्बर प्रिय होने से करते रहेंगे, अतः शेष पूर्वो का ज्ञान मेरे तक ही सीमित रहे, जो मुनि स्थूलभद्र को दण्ड दिया जा रहा है । वह भविष्य के साधुओं की शिक्षा की दृष्टि से भी है । संघ ने पुनः आग्रह किया कि भगवन् ! आपको अनुग्रह करना चाहिए क्योंकि सभी मुनियों में एक स्थूलभद्र ही ऐसे मुनि हैं जो ज्ञान को ग्रहण करने में समर्थ हैं यदि आप इन्हें आगमो का ज्ञान नहीं देंगे तो वह Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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