SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमिट रेखाएं किन्तु क्षुधा की अत्यधिकता से शरीर ने उनको साथ नहीं दिया और वे रात्रि में ही स्वर्गस्थ हो गये। भाई के स्वर्गवास से मेरे मन में विचार उभरा कि भाई की मत्यु का कारण मैं हूँ। मैंने यह हत्या की है। मेरा मानसिक सन्ताप प्रतिक्षण बढ़ने लगा। मैंने श्रमण संघ से नम्र निवेदन किया कि प्रायचिश्त देकर मुझे शुद्ध करें। श्रमण संघ ने कहा-तुमने विशद्ध-भावना से उपवास की प्रेरणा दी थी, अतः प्रायश्चित का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता। संघ के प्रस्तुत निर्णय से मुझे सन्तोष नहीं हुआ। मैंने पुनः अनुनय किया यदि यह बात भगवान श्रीमन्धर स्वामी से सुन लूं तो मैं आश्वस्त हो सकती हूँ।' ____संघ ने मेरे लिए कायोत्सर्ग किया, जिससे आकृष्ट होकर शासनदेवी उपस्थित हई। उसने संघ को स्मरण करने का कारण पूछा। संघ ने मेरी ओर संकेत करते हुए कहा--इस साध्वी को श्रीमन्धर स्वामी के पास ले जाकर आश्वस्त करें। शासनदेवी ने कहा-गमन और आगमन निविधता से सम्पन्न हो एतदर्थ संघ तब तक कायोत्सर्ग मुद्रा में रहे। शासन देवी मुझे श्रीमन्धर स्वामी के समवसरण में ले गई। मैंने भगवान को जाकर वन्दना की ओर पर्युपासना करने लगी। श्रीमन्धर स्वामी ने मुझे लक्ष्य कर कहा-भरत क्षेत्र से आने वाली साध्वी निर्दोष है। Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy