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________________ आचार्य स्थूलभद्र ___ दोनों साधुओं ने आकर आचार्य का मध्यम मार्ग संघ के समक्ष में रखा । संघ को प्रसन्नता हुई। संघ ने मुनि स्थूलभद्र आदि पांच सौ अध्ययन करने वाले मुनियों को और साथ ही एक विद्यार्थी मुनि की दो-दो सेवा करने वाले मुनियों को, इस प्रकार पन्द्रह सौ मुनियों को प्रस्थित किया। वे कुछ समय के पश्चात् आचार्य भद्रबाहु के सानिध्य में पहुंचे । आचार्य ने वाचना देने के पूर्व बताया कि यहां पर कोई भी परस्पर एकान्त-शान्त स्थान पर बैठकर पुनः चिन्तन करे, किन्तु संभाषण न करें । आचार्य भद्रबाहु ने वाचना प्रारम्भ की। सभी साधु मनोयोग से अध्ययन में लग गये । महाप्राण ध्यान की साधना से अध्ययन में समय की कमी रहती थी, साथ ही परस्पर वार्तालाप का निषेध होने से अध्ययनशील मुनियों का मन न लगा। कुछ समय के पश्चात् वे अध्ययन छोड़कर पुनः पाटलिपुत्र आ गये। एक मुनि स्थूलभद्र जमे रहे । वे स्थिर बुद्धि और प्रतिभा सम्पन्न थे । आठ वर्ष तक निरन्तर अध्ययन चलता रहा और आठ पूर्वो का अध्ययन भी सम्पन्न हो गया। आचार्यभद्रबाहु ने स्थूलभद्र की परीक्षा के लिए प्रश्न किया-क्या तुम्हारा मन तो अध्ययन से नहीं उचटा है न ? स्थूलभद्र ने नम्र निवेदन करते हुए कहा -भगवन् ! मन तो नहीं उचटा है, पर समय बहुत कम मिलने से वह भरा भी नहीं हैं। भद्रबाहु ने स्नेह की वर्षा करते हुए कहा-वत्स ! Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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