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________________ अमिट रेखाए नहीं रख सकती है, उसका मन उसे पाने के लिए मचल उठता है, वैसे ही रूपवान स्त्री को प्राप्त कर बड़े-बड़े साधक भी विचलित हो जाते हैं. परन्तु स्थूलभद्र काजल की कोठरी में रहकर भी बेदाग रहे, क्या यह महान् कला नहीं है ? ܡ रथिक के विचार शान्त हो गए थे। उसने कहा- मैं उस घोर तपस्वी का शिष्य बनना चाहता हूं, मैं भी उस महामार्ग पर चलना चाहता हूँ । कोशा ने कहा -- जिस दिन मुनि वर्षावास पूर्ण कर यहां से प्रस्थित हुए उसी दिन मैंने भी यह प्रतिज्ञा ग्रहण की थी कि राजा के द्वारा प्रेषित पुरुष के अतिरिक्त किसी के साथ क्रीड़ा न करूंगी, पर अब मेरा मन सर्वथा शान्त है । मेरी यही हार्दिक कामना है कि अब पूर्ण पवित्र जीवन जीऊं । रथिक ने अपना शिर कोशा के चरणों में झुका दियातू मेरी गुरु है । तू अपना जीवन पवित्र रूप से बिता । मैं भी स्थूलभद्र के चरणों में रहकर अपना जीवन पवित्र बनाऊंगा, सच्चा कलाकार बनूंगा । Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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