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________________ प्राचीन भारतीय वाङ्मय में पार्श्वचरित डा० जयकुमार जैन जेनधर्म के तेईसवें तीर्थङ्कर भगवान् पार्श्वनाथ के चरित को जैन कवियों ने तीर्थङ्कर महावीर के बाद प्रथम स्थान दिया है। भारतवर्ष की सभी भाषाओं में तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के चरित्र पर लिखे गये अनेक काव्य उपलब्ध हैं। क्योंकि पार्श्वनाथ का आख्यान बड़ा ही रोचक तथा घटनाप्रधान है। जैन शास्त्रों की मान्यतानुसार पार्श्वनाथ के २५० वर्ष बीत जाने पर भगवान् महावीर का जन्म हुआ था। वीरनिर्वाण सम्वत् और ईस्वीसन् में ५२७ वर्ष का अन्तर है। तीर्थङ्कर महावीर की कुल आयु कुछ कम ७२ वर्ष की थी। अतएव ५२७+७२=५९९ वर्ष ई० पू० में महावीर का जन्म सिद्ध होता है। महावीर के जन्म के २५० वर्ष पू० अर्थात् ५९९+ २५० =८४९ वर्ष ई०पू० पार्श्वनाथ का निर्वाण समय है। प्राचीन भारतीय आर्यभाषाओं-संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश में २० से भी अधिक काव्य तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के जीवनचरित को लेकर विविध काव्यविधाओं में लिखे गये हैं। उन्हीं का संक्षिप्त विवेचन यहाँ प्रस्तुत है। १. पाश्र्वाभ्युदय:-जिनसेन यह तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के विषय में लिखा मया प्रथम काव्य तथा समस्यापूतिकाव्यों में भी आद्य और सर्वोत्तम रचना है। चार सर्गात्मक इस काव्य में क्रमशः ११८, ११८, ५७, और ७१ कूल ३६४ पद्य हैं। कविकुलगुरु कालिदास कृत मेघदूत के पद्यों के एक या दो पादों को लेकर समस्यापूति के रूप में सम्पूर्ण पाश्र्वाभ्युदय की रचना की गई है। मन्दाक्रान्ता छन्द के अतिरिक्त ५ मालिनी और १ वसन्ततिलका छन्द है। आचार्य जिनसेन ( ८वीं शताब्दी) के समय मेघदूत का क्या रूप था-यह जानने के लिप पाश्वर्वाभ्युदय का अद्वितीय महत्त्व है। पार्श्वनाथविषयक उत्तरकालीन काव्यों की तरह इस काव्य मैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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