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________________ ( १० ) स्थानांगसूत्र में बताया है कि मध्यलोक में चन्द्र, सूर्य, मणि, ज्योति, अग्नि से प्रकाश होता है। अंगुत्तरनिकाय में आभा, प्रभा, आलोक और प्रज्योत इन प्रत्येक के चार प्रकार बताये गये हैं । वे हैं-चन्द्र, सूर्य, अग्नि, प्रज्ञा ।५३ स्थानांग में लोक को चौदह रज्जु प्रमाण कहकर उसमें जीव और अजीव द्रव्यों का सद्भाव बताया है । वैसे ही अंगुत्तरनिकाय में भी लोक को अनंत कहा है५४ और वह सान्त भी है। तथागत बुद्ध ने यही कहा. है कि पांच काम गुण रूप रसादि यही लोक है और जो मानव पांच काम गुण का परित्याग करता है वही लोक के अन्त में पहुंचकर वहाँ पर विचरण करता है। ___स्थानांग में भूकंप के तीन कारण बताये हैं५५ (१) पृथ्वी के नीचे का घनवात व्याकुल होता है और उससे घनोदधि समुद्र में तूफान आता है, (२) कोई महेश नामक महोरग देव अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन करने के लिए पृथ्वी को चलित करता है, (३) देवासुर-संग्राम जब होता है तब भूकंप आता है। — अंगुत्तरनिकाय में भूकंप के आठ कारण बताये हैं। (१) पृथ्वी के नीचे की महावायु के प्रकम्पन से उस पर रही हुई पृथ्वी प्रकम्पित होती है, (२) कोई श्रमण-ब्राह्मण अपनी ऋद्धि के बल से पृथ्वी भावना को करता है, (३) जब बोधिसत्त्व माता के गर्भ में आते हैं, (४) जब बोधिसत्त्व माता के गर्भ से बाहर आते हैं, (५) जब तथागत अनुत्तर ज्ञान लाभ को प्राप्त करते हैं, (६) जब तथागत धर्मचक्र का प्रवर्तन करते हैं, (७) जब तथागत आयु संस्कार का नाश करते हैं, (८) जब तथागत निर्वाण प्राप्त करते हैं। जैन दृष्टि से जैन आगम साहित्य में अनेक स्थलों पर ऐसा उल्लेख है कि एक क्षेत्र में एक ही तीर्थकर या चक्रवर्ती आदि होते हैं। जैसे भरत क्षेत्र में एक तीर्थंकर, ऐरावत क्षेत्र में एक तीर्थंकर, महाविदेह क्षेत्र के बत्तीस विजय में बत्तीस तीर्थकर, इस प्रकार जम्मूद्वीप में ३४ तीर्थंकर और उसी प्रकार ६८, ६८ तीर्थकर क्रमशः धातकी खण्ड और अर्द्धपुष्कर में होते हैं। इस प्रकार कुल उत्कृष्ट १०० तीर्थकर हो सकते हैं किन्तु सभी का क्षेत्र पृथक्-पृथक् होता है। जैन मान्यता की तरह ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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