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________________ & भारतीयदर्शन की सार्वभौम चितनदृष्टि : अनेकान्तवाद वैदिक काल से लेकर महात्मा गाँधी के समय तक दृष्टि दौड़ा जाइए, भारतीय संस्कृति की जो एक विशेषता हमेशा उसके साथ मिलेगी, वह इसकी अहिंसाप्रियता है । वस्तुतः संस्कृतियों के बीच सात्विक समन्वय का काम अहिंसा के बिना चल ही नहीं सकता । तलवार से हम मनुष्य को पराजित कर सकते हैं, उसे जीत नहीं सकते । मनुष्य को जीतना, असल में उसके हृदय पर अधिकार पाना है और हृदय की राह समरभूमि की लाल कीच नहीं, सहिष्णुता का शीतल प्रदेश है, उदारता का उज्ज्वल क्षीरसमुद्र है । अनादि काल से भारत अहिंसा की साधना में लीन रहा है । यह साधना कभी-कभी आत्मघातिनी भी सिद्ध हुई है, किन्तु भारत तब भी अपने परम धर्म से नहीं डिगा । भारतीय अहिंसा का अर्थ केवल रक्तपात से ही बचना नहीं, वरन् उन सभी बातों से बचना रहा है, जिनसे किसी को भी क्लेश पहुँचता हो । रक्तपात यदि आत्मरक्षा के लिए किया जाए तो भारतीय संस्कृति उसे हिंसा नहीं मानती । ऐसे ही रक्तपात की उपेक्षा करने का उपदेश स्वयं भगवान् कृष्ण ने दिया है । किन्तु समस्त भारतीय साहित्य में कहीं भी वह पाप क्षम्य नहीं बताया गया, जो कटु वचन कह कर दूसरों को कष्ट पहुँचाने से होता है । जो वाणी में तर्क हो नहीं, आँखों में अंगारे भरकर शास्त्रार्थ करने से होता है, संक्ष ेप में जो उस मनुष्य का पाप है, जिसको विश्वास है कि मैं जो कहता हूँ वह ठीक है, बाकी सब गलत भारत की अहिंसा - साधना जैन धर्म में अपने परम उत्कर्ष पर पहुँची और जैन धर्म में भी अहिंसा का उच्चतम शिखर अनेकान्तवाद Jain Education International ५६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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