SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना मध्यकाल - बारहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी तक ) और आधुनिक काल -- ( सत्रहवीं शताब्दी से अब तक ) इनमें प्राचीन काल मुख्यतः जैन साहित्य का काल है । कन्नड़ के जैन साहित्यकारों में महाकवि पंप का नाम गौरव के साथ याद किया जाता है । इस भाषा में पोन्न, रन्न और जन्न- ये तीनों कवि 'रत्नत्रय' कहे जाते हैं । कंति कन्नड़ की आदि कवयित्री मानी जाती है । उसे 'अभिनव वाग्देवी' की उपाधि प्राप्त थी । कन्नड़ साहित्य में जिन कृतियों एवं कृतिकारों का महत्त्वपूर्ण स्थान है, उनमें प्रमुख हैं - महाकवि पंप (आदिपुराण, सन् ६४१ ), पोन (शांतिनाथ पुराण सन् ६५० लगभग), रन्न ( अजितनाथ पुराण, सन् ६६३), चंडुराय (त्रिषिष्टशिलाका पुराण, सन् ६७८), अभिनव पंप-नागचन्द्र (मल्लिनाथ पुराण, सन् ११० ), बंधु वर्मा (हरिवंश पुराण, सन् १२००), कुमुदेंदु ( रामायण, सन् १२७५ लगभग), रत्नाकरवर्णी ( भरत वैभव, सन् १५५७) आदि । ये कतिपय ग्रंथ तो संदर्भ रूप में यहाँ परिगणित किये गये हैं, किन्तु इनके अतिरिक्त काव्य, व्याकरण ज्योतिष, गणित आदि विषयों पर ऐसे सहस्राधिक ग्रंथ हैं, जिनका प्रणयन जैन साहित्यकारों ने किया है । २२४ कन्नड़ के उद्भव काल से लेकर आधुनिककालपर्यंत जैन साहित्यकारों ने, जिनमें श्रमण एवं श्रावक (गृहस्थ ) दोनों ही रहे हैं, अपनी अखण्ड साधना का दीप जलाकर उसकी प्रखर ज्योति से कन्नड़ भाषा और साहित्य को चमत्कृत किया है । इस प्रकार हम भारत की उपर्युक्त प्रमुख भाषाओं के साहित्य पर विहंगम दृष्टि डालने के उपरान्त इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सुदूर प्राचीन काल से लेकर अर्वाचीन कालपर्यंत भारत की अधिकांश भाषाओं के साहित्य में श्रमण संस्कृति एवं श्रमण साहित्य का गौरवपूर्ण स्थान है । उनमें श्रमण संस्कृति के कालजयी स्वर आज भी सुने जाते हैं, और शदियों आगे तक सुने जाते रहेंगे । - कलाकुमार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy