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________________ १४८ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना प्राप्त होता है। उसके लिए भगवान् का आदेश ही प्रमाण है । जीव और ब्रह्म का अभेद-ज्ञान जीव को अपनी बुद्धि या साधना के प्रयासों से नहीं होता, अपितु 'तत्वमसि श्वेतकेतो' के उपदेश से होती है । अमुक कार्य धर्म है, इस यज्ञ से यह इस अदृष्ट की उत्पत्ति होगी, स्वर्ग कामो यजेत् आदि के लिए व्यक्ति का साक्षात् अनुभव और बुद्धि प्रमाण नहीं। इसमें भगवान का अपौरुषेय ज्ञान हो प्रमाण है। उसी को तीनों कालों का प्रतिक्षण प्रत्यक्ष रहता है। सभी धर्मों में आप्त वाक्य और शास्त्र ही धर्माचरण के लिए प्रमाण हैं। धर्म के दो रूप हैं-सामान्य और विशेष । मानव मात्र के लिए अपेक्षित मानवोचित गुणों पर हो सामान्य धर्म टिका हुआ है । सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा, इन्द्रिय-दमन, अक्रोध, अस्तेय आदि ऐसे गुण हैं जिनकी उपस्थिति हर मानव में आवश्यक है। इन्हीं से मानव की अभ्युदय की आकांक्षा और उसके अभ्युदय का स्वरूप दूसरों की सुख-सुविधा का ध्यान रखते हुए हो सकता है। ये ही उसके अन्तःकरण को निर्मल करते हए उसको मोक्ष मार्ग का पथिक बना सकते हैं। अतः ये गुण तो प्रत्येक सम्प्रदाय या मजहब की मूल आधार भित्ति ही होने चाहिएँ। जो सम्प्रदाय या मजहब इन गुणों का अवमूल्यन करता है, वह वस्तुतः धर्म के वास्तविक स्वरूप की प्रतिष्ठा में असफल है । सभी विशेष धर्मों का प्रयोजन मानव में इन सामान्य धर्मों की प्रतिष्ठा एवं पुष्टि है। विशेष धर्मों का धर्मत्व ही उनकी इस क्षमता पर टिका हआ है। मनू ने सामान्य धर्म के निम्नलिखित लक्षण दिये हैं--धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध ।२ पूजापद्धति और आचारपद्धति की विशेषता ही विशेष धर्म का आधार है। यह विशेषता ही सम्प्रदायों का निर्माण करती है। हिन्दू और मुसलमानों की पूजा पद्धति भिन्न-भिन्न हैं, अत: वे दोनों दो धर्म अर्थात दो सम्प्रदाय या मजहब हैं। धर्म की विशेषता अधिकारी भेद १. वेदप्रणिहितो धर्मों ह्यधर्मस्तद्विपर्ययः । वेदो नारायणो साक्षात् स्वयंभूदिति शुश्रूम ॥ २. धृतिः क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रयनिग्रहः । धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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