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________________ भ. महावीर और बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षु-भिक्षुणियाँ १ में उत्पन्न हुए थे और शाक्य राजा भद्दिय, आनन्द आदि पाँच अन्य शाक्य कुमारों के साथ प्रवजित हुए थे। १९ महाकाश्यप : महाकाश्यप बुद्ध के कर्मठ शिष्य थे। इनका प्रव्रज्या-ग्रहण से पूर्व का जीवन भी बहुत विलक्षण और प्रेरक रहा है । पिप्पलीकुमार और भद्राकुमारी का आख्यान इन्हीं का जीवन-वृत्त है। वही पिप्पलीकुमार माणवक धर्म-संघ में आकर आयुष्मान् महाकाश्यप बन जाता है। इनके सुकोमल और बहुमूल्य चीवर का स्पर्श कर बुद्ध ने प्रशंसा की। उन्होंने बुद्ध से वस्त्र-ग्रहण करने का आग्रह किया। बुद्ध ने कहा - "मैं तुम्हारा यह वस्त्र ले भी लू, पर क्या तुम मेरे इस जीर्ण, मोटे और मलिन वस्त्र को धारण कर सकोगे ?" महाकाश्यप ने वह स्वीकार किया और उसो समय बुद्ध के साथ उनका चीवर-परिवर्तन हुआ। बुद्ध के जीवन और बौद्ध परम्परा की यह एक ऐतिहासिक घटना मानी जाती है । महाकश्यप विद्वान् थे। ये बुद्ध-सूक्तों के व्याख्याकार के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। बुद्ध के निर्वाण-प्रसंग पर ये मुख्य निर्देशक रहे हैं। पाँचसौ भिक्षओं के परिवार से विहार करते, जिस दिन और जिस समय ये चिता-स्थल पहुंचते हैं; उसी दिन और उसी समय बुद्ध की अन्त्येष्टि होती है । __ अजातशत्रु ने इन्हीं के सुझाव पर राजगृह में बुद्ध का धातु निधान (अस्थि-गर्भ) बनवाया, जिसे कालान्तर से सम्राट अशोक ने खोला और बुद्ध की धातुओं को दूर-दूर तक पहुँचाया । २१ . ये महाकाश्यप ही प्रथम बौद्ध-संगोति के नियामक रहे हैं । २२ आज्ञाकौण्डिन्य, अनिरुद्ध आदि और भी अनेक भिक्षु ऐसे रहे हैं, जो बुद्ध के पारिपाश्विक कहे जा सकते हैं। १६. विस्तार के लिए देखें - आगम और त्रिपिटक: एक अनुशीलन, प्रथम ___ खण्ड के अन्तर्गत-'भिक्षु-संघ और उसका विस्तार' प्रकरण । २०. दीघनिकाय, महापरिनिव्वाण सुत्त। २१. दीघनिकाय, अट्ठकथा, महापरिनिव्वाण सुत्त । २२. विनयपिटक, चुल्लवग्ग, पंचशतिका खन्धक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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