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________________ कर्मवाद : पर्यवेक्षण देशघाती हैं और केवल ज्ञानावरण सर्वघाती है। सर्वघाती कहने का तात्पर्य प्रबलतम आवरण की अपेक्षा से है । केवल ज्ञानावरणीय कर्म सर्वघाती होने पर भी आत्मा के ज्ञान गुण को सर्वथा आवृत नहीं करता, परन्तु केवल ज्ञान का सर्वथा निरोध करता है। निगोदस्थ जीवों में उत्कट ज्ञानावरणीय कर्म का उदय रहता है। जैसे घनघोर घटायों से सूर्य के पूर्णतः आच्छादित होने पर भी उसकी प्रभा का कुछ अंश अनावृत रहता है जिससे दिन और रात का विभाग प्रतीत होता है, वैसे ही ज्ञान का अनन्तवां भाग नित्य अनावृत रहता है । १०६ जैसे घनघोर घटानों को विदीर्ण कर सूर्य की प्रभा भूमण्डल पर आती है, पर सभी मकानों पर उसकी प्रभा एक सदृश नहीं गिरती, मकानों की बनावट के अनुसार मन्द और मन्दतर और मन्दतम गिरती है, वैसे ही ज्ञान की प्रभा मतिज्ञानावरण आदि के उदय के तारतम्य के अनुसार मन्द, मन्दतर और मन्दतम होती है। ज्ञान, पूर्णरूप से तिरोहित कभी नहीं होता। यदि ऐसा हो जाय तो जीव अजीव हो जाए। ___इस कर्म की स्थिति अधिकतम तीस कोटा-कोटि गागरोपम और न्यूनतम अन्तमुहूर्त की है ।१०७ १०६. (क) देशः---ज्ञानस्याऽऽभिनिबोधिकादिमावृणोतीति देशज्ञानावरणीयम्, सर्व ज्ञानं-केवलाख्यमावृणोतीति सर्वज्ञानावरणीयं, केवलावरणं हि आदित्यकल्पस्य केवलज्ञानरूपस्य । जीवस्याच्छादकतया सान्द्रमेघवृन्दकल्पमिति तत्सर्वज्ञानावरणं । मत्याद्यावरणं तु घनातिच्छादितादित्येषत्प्रभाकल्पस्य केवलज्ञानदेशस्य कटकुट्यादिरूपावरणतुल्यमिति देशावरणमिति । -ठाणाङ्ग, २।४।१०५ टीका (ख) स्थानाङ्ग-समवायाङ्ग, पृ० ६४-६५ पं० दलसुख मालवणिया । (ग) सव्वजीवाणं पि य णं अक्खरस्स अणंतभागो णिच्चुग्घाडिओ हवइ । जइ पुण सो वि आवरिज्जा तेणं जीवो अजीवत्तं पावेज्जा । 'सुट्ठवि मेहसमुदये होइ पभा चन्दसूराणं ।' -- नन्दीसूत्र ४३ १०७. उदहीसरिसनामाणं, तीसइ कोडिकोडीओ। उक्कोसिया ठिई होइ, अन्तोमुहुतं जहन्निया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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