SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मवाद : पर्यवेक्षण (२) दर्शनावरण (३) वेदनीय (४) मोहनीय (५) प्रायु (६) नाम (७) गोत्र (८) और अन्तराय । ५ ___ इन आठ कर्म-प्रकृतियों के भी दो अवान्तर भेद हैं। इनमें चार घाती हैं, और चार अघाती हैं । ज्ञानावरण (२) दर्शनावरण (३) मोहनीय (४) अन्तराय ये चार धाती हैं ।१६ (१) वेदनीय (२) आयु (३) नाम और (४)गोत्र ये अघाती हैं। जो कर्म आत्मा से बंधकर उसके स्वरूप का या उसके स्वाभाविक गुणों का घात करते हैं वे घाती कर्म हैं। इन की अनुभाग-शक्ति का ६५. नाणस्सावरणिज्जं, दंसणावरणं तहा । वेयणिज्जं तहा मोह, आउकम्मं तहेव य ॥ नामकम्मं च गोयं च, अन्तरायं तहेव य । एवमेयाइ कम्माइ, अट्ठव उ समासओ। -उत्तराध्ययन ३३१२-३ (ख) स्थानाङ्ग ८।३।५६६ (ग) प्रज्ञापना २३।१ (घ) भगवती शतक ६, उद्द० ६ पृ० ४५३ (ङ) तत्त्वार्थ सूत्र ८०५ (च) प्रथम कर्मग्रन्थ गा० ३ (छ) पंचसंग्रह २-२ ६६. तत्र घातीनि चत्वारि, कर्माण्यन्वर्थसंज्ञया । घातकत्वाद् गुणानां हि जीवस्यैवेति वाक्स्मृतिः ॥ --पंचाध्यायी २१९९८ (ख) आवरणमोहविग्धं, घादी जीवगुणधादणत्तादो। -गोमटसार-कर्मकाण्ड : ६७. ततः शेषचतुष्कं स्यात्, कर्माघातिविवक्षया । गुणानां घातकाभावशक्तिरप्यात्मशक्तिवत् । -पंचाध्यायी RAREE (ख) आउगणामं गोदं, वेयणियं तह अघादित्ति । -गोमटसार-कर्मकाण्ड : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy