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________________ अध्यात्मवाद : एक अध्ययन कौषीतकी उपनिषद् में कहा है-यह आत्मा शरीर-व्यापी है ।६५ तैत्तिरीय उपनिषद् ने प्रतिपादित किया है--अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनन्दमय-ये सभी आत्माएँ शरीरप्रमाण है।६६ ___ मुण्डकोपनिषद् आदि में प्रात्मा को व्यापक माना गया है ।६७ "हृदय कमल के भीतर यह मेरा अात्मा पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्यलोक अथवा इन सब लोकों की अपेक्षा बड़ा है ।"६८ __गीता के अनुसार-आत्मा को शस्त्र छेद नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती, पानी गीला नहीं कर सकता और हवा सूखा नहीं सकती है .६९ जैसे मानव जीर्ण-शीर्ण वस्त्र को उतारकर नवीन वस्त्रों को धारण करता है, वैसे ही यह प्रात्मा भो जीर्ण शरीर का परित्याग कर नवीन शरीर को धारण करता है। ६६. ६५. एष प्रज्ञात्मा इदं शरीरमनुप्रविष्टः । -कौषीतको उपनिषद् ३५।४।२० तैत्तिरीय उपनिषद् १।२ ६७. सर्वगतम् । -मुण्डकोपनिषद् १।११६ (ख) वैशेषिक दर्शन ७।१।२२ (ग) न्यायमंजरी पृ० ४६८ (घ) प्रकरण पं० पृ० १५८ (ङ) ईशावास्यमिदं सर्व, यत् किञ्च जगत्यां जगत् । --ईशावास्य उप० ६८. एष म आत्मान्तर हृदये ज्यायान् पृथिव्या, ज्यायानन्तरिक्षा ज्यायान् दिवो ज्यायानेभ्यो लोकेभ्यः । -छान्दोग्य उप० ३॥१४॥३ ६६. नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुतः ।। गीता, अध्याय २ । २३ ७०. वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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