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________________ दस धर्म का प्रवेशद्वार : दान दान, धर्मरूपी भव्य-भवन का प्रवेशद्वार है ।' हृदय की उदारता का पावन प्रतीक है। मन की विराट्ता का द्योतक है, जीवन के माधुर्य का प्रतिबिम्ब है। ___ डुदान् धातु से अन् प्रत्य लगकर दान शब्द निष्पन्न हुआ है । जो दिया जाता है वह दान है। प्राचार्य शंकर ने दान का अर्थ संविभाग किया है। प्राचार्य उमास्वाति ने-अपनी आत्मा और पर के अनुग्रह के लिए त्याग करना दान माना है। उक्त मान्यता द्वारा यह ध्वनित किया गया है कि दाता अपने दान से पर का ही उपकार नहीं करता वरन् स्वयं भी उपकृत होता है। इस प्रकार दाता आदाता को उपकृत करता, है तो आदाता भी दाता को उपकृत करता है। पाखिर पादाता ही तो दाता को दान धर्म का १. प्रार्थना साधक को ईश्वर के मार्ग पर आधी दूरी तक पहुँचायेगी. उपवास महल के द्वार तक ले जायेगा और दान महल में प्रवेश करायेगा। मुहम्मव २. दीयते इति दानं । ३. दानं संविभागः । लार्य शंकर ४. अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्गो दानम् । -तत्त्वार्थ सूत्र, अ० ७ । सू० ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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