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________________ सेवा : एक विश्लेषण १८६ उत्तर में भगवान् कहते हैं-गौतम ! जो मनुष्य ग्लान की सेवा रहा है वह धन्य है। गौतम की जिज्ञासा ने पुनः वाणी का रूप लिया "भगवन् ! आप यह किस हेतु से कह रहे हैं ?" समाधान की भाषा में उत्तर मिला-गौतम ! जो ग्लान की सेवा कर रहा है वह मेरी सेवा कर रहा है, और जो मेरी सेवा कर रहा है, वह ग्लान की सेवा कर रहा है। अरिहंत का दर्शन अरिहंत की आज्ञा का पालन करना है। अर्थात् अरिहंत के दर्शन का सार हैअरिहन्त की आज्ञा का पालन करना । अतः हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा कि जो मनुष्य ग्लान की सेवा कर रहा है, वह दर्शन से मुझे स्वीकार कर रहा। वही मेरा सच्चा उपासक है । महात्मा बुद्ध ने भी एक रुग्ण भिक्षु को दर्द से छटपटाते देखकर आनन्द आदि प्रधान श्रमणों को सम्बोधितकर कहा था-आनन्द, सर्व ३७. किं भन्ते ! जे गिलाणं पडियरइ से धन्न ? उदाहु जे तुमं दसणेण पडिवज्जइ ? गोयमा ! जे गिलाणं पडियरइ । -आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति पृ० ६६१ (ख) जो गिलाणं पडियरइ सो मं पडियरइ । ___ जो मं पडियरइ सो गिलाणं पडियरइ ।। -प्रोपनियुक्ति, सटीक गा० १२ (ग) जे गिलाणं पडियरइ से धण्णे (घ) उत्तराध्ययन, सर्वार्थ सिद्धि, परीषह अध्ययन, ३८. से केणट्टणं भन्ते एवं वुच्चइ ? । जे गिलाणं पडियरइ से मं दंसणेणं पडिबज्जइ, जे मं दंसणेण पडिवज्जइ से गिलारणं पडियर इत्ति आणाकरणसारं खु अरहंताणं दंसणं, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जे गिलाणं पडियरइ से मं पडिवज्जइ जे मं पडिवज्जइ से गिलारणं पडिवज्जइ। -प्रावश्यक हारिभद्रीया वृत्ति पृ० ६६१-६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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