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________________ धर्म और दर्शन श्रमण संस्कृति ने तप को धर्म माना है। स्थानाङ्ग", समवायाङ्ग में दश विध धर्म का जो उल्लेख है उसमें तप भी एक है। मोक्ष मार्ग की साधना करने वाले साधक के लिए तप की साधना अनिवार्य है। ___ आगम साहित्य का पर्यवेक्षण करने पर ज्ञात होता है कि श्रमण संस्कृति का श्रमरण श्रमणत्व को स्वीकार कर तपः कर्म का प्राचरण करता है। सभी तीर्थ कर तप के साथ ही प्रव्रज्या लेते हैं। क्योंकि ४. धम्मो मंगलमुक्किट्ठ', अहिंसा संजमो तवो । -दशवकालिक ११ ५. खंती मुत्ती प्रज्जवे मद्दवे लाघवे सच्चे। संजमे तवे चियाए बंभचेरवासे । -स्थानाङ्ग ७१२ ६. खंती य मद्दवज्जव, मुत्ती तव संजमे य बोद्धव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च, बंभं च जइ-धम्मो ।। -समवायाङ्ग १० ७. नाणं च दंसरणं चेव, चरित्तच तवो तहा। एयं मग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छन्ति सोग्गई॥ --उत्तराध्ययन २८।३ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता एवं जहा उसभदत्तो तहेव पव्वलओ, णवरं पंचहिं पुरिससएहिं सद्धिं तहेव जाव सामाइयमाइयाइएक्कारसभंगाई अहिज्जइ, अहिज्जइत्ता बहूहिं चउत्थ छट्टट्ठ मजाव मासद्धमासक्खमणेहिं विचित्तहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । ___ -भगवती ६।३३ (ख) भगवती २।११९०६ ६. सुमइत्थ णिच्चभत्तण, णिग्गओ वासुपुज्ज चोत्थेणं । पासो मल्ली य अट्ठमेण सेसा उ छ?रेणं ॥ __ --समवायाङ्ग सूत्र १६८ (ख) सुमइत्थ निच्चभत्तण, निग्गतो वासुपुज्ज जिण चउत्थेण । पासो मल्लीवि य अट्टमेण सेसा उ छठेणं ॥ -अावश्यक नियुक्ति गा० २५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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