SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ धर्म और दर्शन ४-वस्तु है और नहीं है, ऐसा नहीं है, यह भी नहीं है । सप्तभंगी के स्वरूप का उल्लेख पहले किया जा चुका है । सप्तभंगी में और प्रस्तुत चतुष्कोटि प्रतिषेध में वस्तुतः कोई समानता नहीं है । सप्तभंगी में वस्तु के अस्तित्व और नास्तित्व प्रादि का प्रतिपादन है, जब कि इस प्रतिषेध में अस्तित्व को कोई स्थान नहीं है, केवल नास्तित्व का ही निरूपण पाया जाता है। सप्तभंगी में जो अस्तित्व और नास्तित्व का विधान है, वह स्वचतुष्टय और परचतुष्टय के आधार पर है और क्षण-क्षण में होने वाला हमारा अनुभव उसका समर्थन करता है । सप्तभंगी के अनुसार मनुष्य मनुष्य है, पशु-पक्षी आदि मनुष्येतर नहीं है। किन्तु चतुष्कोटि प्रतिषेध का कहना है कि कि मनुष्य मनुष्य नहीं है, मनुष्येतर भी नहीं है; उभय रूप भी नहीं है, अनुभव रूप भी नहीं है। वह कुछ भी नहीं है और वह कुछ भी नहीं है, ऐसा भी नहीं है । इस प्रकार यहाँ न कोई अपेक्षाभेद है और न अस्तित्व का कोई स्थान ही है। सप्तभंगी में पदार्थो के अस्तित्व से इन्कार नहीं किया गया है, सिर्फ उसके स्वरूप की नियतता प्रदर्शित करने के लिए यह दिखलाया गया है कि वह पर-रूप में नहीं है। सप्तभंगोवाद हमें सतरंगी पूष्पों से सुशोभित विचारवाटिका में विहार कराता है, तो बौद्धों का निषेधवाद पदार्थों के अस्तित्व को अस्वीकार कर के शुन्य के घोर एकान्त अन्धकार में ले जाता है। अनुभव उसको कोई आधार प्रदान नहीं करता है । अतएव यह स्पष्ट है कि सप्तभंगी का बौद्धों के चतुष्कोटिनिषेध के साथ लेशमात्र भी सरोकार नहीं है। स्याद्वाद संशयवाद नहीं : जैनदर्शन की यह मान्यता है कि प्रत्येक पदार्थ अनन्त धर्मात्मक है।३१ अनन्त धर्मात्मकला के बिना किसी पदार्थ के अस्तित्व की कल्पना ३०. नासन्नसन्न सदसन्न नाप्यनुभयात्मकम् । चतुष्कोटिविनिमुक्तं, तत्त्वं माध्यमिका विदुः ॥ ३१. अनन्तधर्मात्मकमेव तत्त्वं, ___ अतोऽन्यथा सत्त्वमसूपपादम् । -अन्ययोग व्यवच्छेद द्वा०, त्रिंशिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy