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________________ १५६ | सद्धा परम दुल्लहा उससे होने वाले दुष्परिणामों पर विचार नहीं करता। अहंकार के नशे में वह बहुधा युद्ध का निर्णय कर बैठता है, अथवा मुकदमेबाजी में लाखों रुपये स्वाहा कर देता है। यह सौदा बहुत ही महँगा पड़ता है । कई बार अहंकार के नशे में मनुष्य प्राणों की बाजी लगा देता है; गलत काम कर बैठता है । जिसके लिए बाद में उसे पछताना पड़ता है। अहंकार स्वयं के लिए ही घातक है, अशान्तिदायक है, आध्यात्मिक विकास का अवरोधक है, सम्यग्ज्ञानप्राप्ति में बाधक है। विनय और नम्रता के गुणों को आग लगाने वाला है । अहंकार अशान्ति का कारण इसलिए है कि अहंकारी व्यक्ति दूसरों का उत्कर्ष, अभ्युदय या विकास देख-देखकर मन हो मन जलता रहता है, वह सदा दूसरों को नीचा दिखाने और झूठ-मूठ बदनाम करने की ताक में रहता है, दूसरों पर रौब जमाता है, इससे लोग उससे नफरत करने लगते हैं, कई तो उससे लड़ने-झगड़ने और बदला लेने को ताक में रहते हैं। इसलिए अहंकारी व्यक्ति प्रायः हरदम आर्तध्यान और रौद्रध्यान की उधेड़बुन में रहता है। अहंकारी हर क्षण चिन्तित, शंकित, भयभ्रान्त एव व्यथित रहता है कि कहीं लोग मेरा अपमान न कर दें, अथवा आर्थिक हानि में न डाल दें, उसे अपनी जान का बहुत खतरा रहता है । अहंकारी व्यक्ति सभी को अप्रिय लगता है, उसके मित्र भी उससे किनाराकशी कर लेते हैं, भीतर ही भीतर लोग उससे घृणा करने लगते हैं। __ अहकारी व्यक्ति के अहं को ठेस पहुँचती है, तब वह तिलमिला उठता है । रोष में आकर दूसरों को अपशब्द कहने और धमकी देने लगता अपनी बुद्धि का अभिमान करने वाला व्यक्ति दूसरों को मूर्ख समझता है । वह प्रायः यही सोचा करता है कि मैं बड़ा आदमी हूँ, लोग मेरी जी हजूरी करें, चापलूसी करें या मैं कहूँ वैसा करें। मैं बुद्धिमान् हैं, दूसरे निरेमूर्ख हैं, मैं जो कुछ सोचता हूँ, कहता हूँ, या करता हूँ, वही ठीक है। अहंकारी व्यक्ति दूसरों को जबरन भय और प्रलोभन देकर या फिर तलवार के बल पर दूसरों को जबरन अपने मत-पंथ का, अपने सम्प्रदाय का अनुयायी बनाता है । अहंकारी मनुष्य का प्रायः ऐसा स्वभाव होता है कि वह प्रत्येक कार्य में दूसरे की त्रुटियां निकालता रहता है, हर अच्छे कार्य करने वाले की नुक्ताचीनी और आलोचना किया करता है, इससे उसके अहंकार को दाना-पानी मिलता रहता है। कुछ अहंकारी लोग छोटी-छोटी-सी बातों को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर अड़ जाते हैं और वातावरण को अशान्त बना कर स्वयं तनावग्रस्त हो जाते हैं। कुछ लोग अहंकार के वश दूसरों के विरोध में ऐसे अकड़ जाते हैं कि वे टुट जाएँगे, पर झुकेंगे नहीं । कूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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