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________________ पुण्य पुरुष - राजा हो या रंक, यह कामना इस संसार में सभी की होती है कि उनके घर-आँगन में फूलों जैसे कोमल प्यारेप्यारे बच्चे खेलते रहें, उनकी नानाविध बाल-क्रीड़ाओं से वातावरण में चहल-पहल बनी रहे, उन्हें देख-देखकर आँखें और हृदय शीतल हों और वंश-परम्परा चलती रहे । अपवाद तो सभी जगह हैं, किन्तु इस संसार में ऐसी कौन-सी नारी होगी जो एक दिन माता बनकर अपने जीवन की चरम सार्थकता को प्राप्त न करना चाहे ? और सभी कुछ हो-धन-वैभव हो, महल-अटारियाँ हों, नौकरचाकर हों, संगी-स्वजन हों, किन्तु गोद खाली रह जाय तो फिर यह सभी कुछ धल है। हमारे बाद कौन भोगेगा इस सारी सम्पत्ति को? खून-पसीना बहाकर, दिन को दिन और रात को रात न समझकर, देश-विदेश की चिन्ता न कर, सर्दी-गर्मी, धूप-छांह और सुख-दुख का विचार न कर जो यह सम्पत्ति एकत्रित की है उसका क्या होगा हमारे बाद ? एक दिन जब महाबली काल का बुलावा आयेगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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