SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का चित्र बना रहा था तब मन में यह लहर उठी कि इस भाग्यशालिनी कन्या का पति कौन होगा? जो होगा, वह कोई विशिष्ट व्यक्ति ही होगा। यह सोचकर मैंने इस कन्या का एक छोटा चित्र बिना किसी को कहे, बिना किसी को दिखाए बनाया और उसे संजोकर अपने पास रख लिया। मैं सोचता हूं, इस कन्या के लिए आप ही योग्य वर हैं। मैंने देशाटन किया है, पर आप-जैसा वर उस कन्या के लिए दूसरा मैंने नहीं देखा।' .. युवराज ने मुसकराते हुए कहा-'कलाकार ! आपकी भावना उत्तम है। यदि आपको कोई एतराज न हो तो यह चित्र।' बीच में ही सुशर्मा बोल पड़ा-'यह चित्र आप अपने पास रखें और चिन्तन करें "मेरा निश्चित अभिप्राय है कि आप ही मलयासुन्दरी के लिए योग्य वर हैं।' मलयासुन्दरी का चित्र देखकर युवराज का हृदय भी झंकृत हो उठा। ३८ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy