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________________ ४८ | चिन्तन के विविध आयाम : खण्ड १ नहीं है और न आध्यात्मिक ही है । यह तो सर्वोच्च और शुभ है । एतदर्थ ही मानव उसकी अभ्यर्थना करता है । स्पिनोजा ने ईश्वर को अनेक गुण युक्त विशिष्ट तत्त्व माना है । वह तत्त्व अविभाज्य है, शाश्वत है, अनन्त है और सभी पदार्थों का एक मात्र आधार है । वही सम्पूर्ण विश्व का नियन्ता है । सारा विश्व उसी से निःसृत है । ईश्वर असीम है, संख्या, अंश, समय से परे हैं; जिन्हें हम ईश्वर के गुण कहते हैं वे गुण केवल वैचारिक रूपों के नाम हैं जिनके आधार पर हमारा मन ईश्वर को समझने का प्रत्यन करता है । स्पिनोजा ने तीन प्रकार के ज्ञान को स्वीकारा है - ऐन्द्रिय संवेदन, बुद्धि और प्रज्ञा । ईश्वरीय तत्त्व का परिज्ञान प्रज्ञा द्वारा हो सम्भव है । पर बुद्धि भी ईश्वर के अनन्त मन का अंश है । उसके मंतव्यानुसार सम्पूर्ण जगत् में ईश्वर है । जो कुछ भी दृग्गोचर होता है वह ईश्वर में ही है और रहता है तथा गतिशील होता है । 2 I लॉक का मन्तव्य है कि ईश्वर को जानना सम्भव है । क्योंकि हमारे अन्तमनस में ईश्वर की आकृतियाँ और धारणाएँ अवस्थित हैं । जब हम बाह्य जगत् को देखते हैं एवं मानव की शक्ति को निहारते हैं तब हम यह चिन्तन करने के लिए बाध्य होते हैं कि इन विराट शक्तियों का सर्जक कोई महान् सर्वाधिक शक्तिशाली और प्रज्ञा स्कन्ध सत्ता अवश्य है और वह सत्ता ईश्वर ही होनी चाहिए । बर्कले के विचारानुसार ईश्वर सभी प्राणियों के अन्तर्मानस को नियन्त्रित करने वाली शक्ति विशेष है । वह सभी को ज्ञान प्रदान करता है। हमें जो कुछ भी संवेदनाएँ होती हैं, वे सभी ईश्वर के कारण होती हैं । हम ईश्वर के असली स्वरूप को नहीं जान पाते हैं । हम उसके सम्बन्ध में उतना ही जान पाते हैं, जितना वह हमें परिज्ञान कराता है । जॉन कॉल्विन, जॉन टोलेण्ड, तिण्डल प्रभृति चिन्तकों का अभिमत है कि ईश्वर नियन्ता है और ऐसा विश्व का निर्माता है, जैसा एक घड़ीसाज घड़ी का निर्माण करता है । घड़ी जब तक चलती रहती है, वहाँ तक घड़ीसाज उसमें हस्तक्षेप नहीं करता, वैसे ही ईश्वर तब तक हस्तक्षेप नहीं करता जब तक विश्व अपने नियमों का उल्लंघन नहीं करता । जिस समय संशयवाद की आंधी चल रही थी कि ईश्वर है या नहीं और इस प्रश्न पर गहराई से चिन्तन चल रहा था, बहुत से विज्ञों का अभिमत था कि ईश्वर नाम का कोई तत्त्व नहीं है । किन्तु रूसो ने उस संक्रान्तिकाल में भी ईश्वर पर निष्ठा व्यक्त की । उसने कहा- बौद्धिकता की तराजू पर ईश्वर को तोला नहीं जा 1 “I say, All is in God; all lives and moves in God. " Jain Education International — Spinozna in his Correspondence, Epistle 21. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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