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________________ लेश्या' जैसे गम्भीर विषयों पर भी चिन्तन किया गया है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों के ग्रन्थों पर महनीय प्रस्तावनाएँ लिखी। उसका संकलन भी इसमें है । अतः 'चिन्तन के विविध आयाम' ग्रन्थ का नाम सार्थक लगता है। ये सारे निबन्ध एक स्थान पर या एक समय में नहीं लिखे गये हैं। इसलिए भाषा में भी विषय के अनुरूप विविधता होना स्वाभाविक है। शीघ्र एवं सुन्दर मुद्रण में स्नेह सौजन्य मूर्ति श्रीचन्दजी सुराना 'सरस' जी का हार्दिक सहयोग मिला है । अतः हम उनका हृदय से आभार मानते हैं। ग्रन्थालय के शानदार प्रकाशनों से आकर्षित होकर दानी महानुभाव अपना उदारतापूर्ण सहयोग प्रदान करते रहे हैं, उनके सहकार को भी हम विस्मृत नहीं हो सकते ! परमादरणीया स्वर्गीया प्रतिभामूर्ति विदुषी महासती श्री प्रभावती जी म० को भी इस अवसर पर भुला नहीं सकते, जिन्होंने जीवन भर संघ की अपूर्व सेवा की । तथा अपनी सन्तान देवेन्द्रमुनिजी 'शास्त्री' एवं महासती श्री पुष्पवती जी सन्त व सती रत्न को जिन-शासन की सेवा में समर्पित कर सद्गुरु व सदगुरुणी जी के गौरव में चार चाँद लगाये हैं। उनकी स्मृति में सत् साहित्य सदा प्रकाश-स्तम्भ के रूप में जन-जन को आलोक प्रदान करता रहेगा। मन्त्री श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय (उदयपुर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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