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________________ ईश्वर : एक चिन्तन | ४१ असीरिया के निवासियों का 'असुर' नामक एक विशिष्ट केन्द्रीय शक्ति पर विश्वास था । यह 'असुर' प्राकृतिक शक्ति नहीं थी अपितु उनका एक राष्ट्रीय देवता था और वे उसे अपना उपास्य देवता मानते थे । इस प्रकार इनमें एकेश्वरवाद प्रचलित था। चीन में ईश्वर-कल्पना चीन में ईश्वर के अर्थ में दो शब्द व्यवहृत होते थे-'शांग-ती' [ऊपर वाला सम्राट] और 'ती-ईएन' ! शांग-ती को प्रसन्न करने के लिए सर्वप्रथम चीन के पीत सम्राट [२६६७२५६८ ईसा पूर्व] ने बलि चढ़ायी थी। उसके बाद सम्राट कू [२४३५-१२६६ ईसा पूर्व] ने शांग-ती की आराधना करके बलि चढ़ायी थी। तदनन्तर वू तिन राजा [१३२४-१२६६ ईसा पूर्व] ने शांग-ती की प्रार्थना की तो उसको देव ने सपने में आशीर्वाद दिया। इस प्रकार ईसा पूर्व १२वीं शताब्दी तक ईश्वर के लिए 'शांगती' नाम चलता रहा, तदनन्तर 'ती-ईएन' नाम प्रचलित हुआ। हान वंश के वेन-ती [१७९-१५७ ईसा पूर्व राजा ने 'शांग-ती' के स्थान पर निम्नलिखित आठ देवताओं की पूजा चालू की (१) आकाश स्वामी, (२) पृथ्वी स्वामी, (३) युद्ध स्वामी, (४) योग स्वामी, (५) थिन स्वामी, (६) चन्द्र स्वामी, (७) सूर्य स्वामी, और (८) चार ऋतुओं के स्वामी । ___ शांग-ती के साथ-साथ अन्य देवताओं की आराधना होने लगी और उनके लिए विशेष बलिवेदियाँ बनायी जाने लगीं। 'शांग-ती' को आकाश शब्द का नाम देकर उसके भीतर सब प्रकार के उच्च, दैवी, उदात्त, भव्य गुणों का समावेश किया गया । इस प्रकार चीन में बहुदेववाद के साथ एकेश्वरवाद की विचारधारा भी प्रचलित थी। जापान में ईश्वर कल्पना जापान में ईश्वर के अर्थ में 'कामी' शब्द प्रयुक्त होता था । यों 'कामी' शब्द आकाश, पृथ्वी व अन्य कई प्राकृतिक देवी-देवताओं के लिए भी प्रयुक्त होता था। धीरे-धीरे मानव के अतिरिक्त पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, समुद्र-पर्वत प्रभृति विलक्षण शक्तियों के लिए भी 'कामी' शब्द का व्यवहार होने लगा। "कामी" देवों में दोनों प्रकार के देवों का जो अच्छे प्रभाव वाले थे और जो बुरे प्रभाव वाले थे, व्यवहार होने लगा । प्रारम्भ में जापानी प्रकृति के उपासक थे। सभी प्राकृतिक शक्तियों को देव मानकर वे उनकी उपासना करते रहे । अन्य पड़ोसी देशवासियों के धर्मों का भी उन पर प्रभाव पड़ा। जिसके फलस्वरूप जापानी देवताओं की संख्या शनैः-शनैः बढ़ती रही और आज १,६०,४३६ शितो देवता हैं। इन सभी देवताओं को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है-(१) पौराणिक देवता, (२) देशभक्त और वीर पुरुष, (३) प्राकृतिक चमत्कारी शक्तियाँ, और (४) कई प्रकार के पशु-प्राणी और वस्तुएँ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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