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________________ पारिभाषि शब्द-कोश : परिशिष्ट ४ होती जाती है । इस समय में प्राणियों की तरह पुद्गलों के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श भी क्रमश: शुभ होते जाते हैं। उदीरणा-नियत समय के पहले ही कर्मों का प्रयत्नपूर्वक उदय में लाना। उपयोग-चेतना का व्यापार विशेष-ज्ञान और दर्शन । उपांग-अंगों के विषय को स्पष्ट करने वाले श्रुतकेवली या पूर्वधर आचार्यों द्वारा रचे गये आगम । एक अहोरात्र प्रतिमा-- साधु द्वारा चौविहार षष्टोफ्वास में ग्राम के बाहर प्रलम्बभुज होकर कायोत्सर्ग करना । एक रात्रि प्रतिमा- साधु द्वारा एक चौविहार अष्टम भक्त में जिनमुद्रा (दोनों पैरों के बीच चार अंगुल का अन्तर रखते हुए सम अवस्था में खड़े रहना) प्रलम्ब बाहु, अनिमिष नयन, एक पुद्गल-निरुद्ध दृष्टि और कुछ झुके हुए वदन से एक रात तक ग्रामादि के बाहर कायोत्सर्ग करना । विशिष्ट संहनन, धृति, महासत्व से युक्त भावितात्मा गुरु द्वारा अनुज्ञात होकर ही प्रस्तुत प्रतिमा को स्वीकार कर सकता है। एकावली तप-विशेष अनुक्रम से किया जाने वाला एक प्रकार का तप । इस तप का क्रम यंत्र के अनुसार चलता है। एक परिपाटी में एक वर्ष, दो महीने और दो दिन का समय लगता है। इसमें चार परिपाटी होती हैं । कुल समय चार वर्ष, आठ महीने और दो दिन लगता है। प्रथम परिपाटी में विकृति का वर्जन आवश्यक नहीं होता । दूसरी में विकृति वर्जन, तीसरी में लेप त्याग और चौथी में आयंबिल आवश्यक होता है। एक हजार आठ लक्षणों के धारक-तीर्थंकर के शरीर में अर्थात् हाथ, पैर, वक्षस्थल तथा देह के अन्य अवयवों में सूर्य, चन्द्र, श्रीवत्स स्वस्तिक, शंख, चक्र, गदा, ध्वजा आदि शुभ चिह्न होते हैं। इन विविध चिह्नों की संख्या १००८ कही गई है। औद्देशिक - परिब्राजक, श्रमण निनन्थ आदि को देने के उद्देश्य से बनाया गया भोजन, वस्त्र अथवा मकान आदि । औत्पत्तिकी बुद्धि-अदृष्ट, अश्रुत व अनालोचित पदार्थों को सहसा ग्रहण कर लेने वाली बुद्धि । कर्म-आत्मा की सत् एवं असत् प्रवृत्तियों के द्वारा आकृष्ट एवं कर्म रूप में परिणत होने वाले पुद्गल विशेष । कल्प-विधि, मर्यादा, आचार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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