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________________ ३८२ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण चलता अथवा चरती हैं, वह स्थान भी 'ब्रज' कहा गया है। कोशकारों ने ब्रज के तीन अर्थ बतलाये हैं-गोष्ठ (गायों का खिरक) मार्ग और वृन्द (मुड)।१८४ इनसे भी गायों से संबंधित स्थान का ही बोध होता है। वैदिक संहिताओं तथा रामायण, महाभारत प्रभृति ग्रन्थों में 'व्रज' शब्द गोशाला, गो-स्थान, गोचर-भूमि के अर्थों में प्रयुक्त हुआ है । ऋग्वेद में यह शब्द गोशाला अथवा गायों के खिरक (वाडा) के अर्थ में आया है । ८५ यजुर्वेद में गायों के चरने के स्थान को 'व्रज' और गो-शाला को 'गोष्ठ' कहा गया है । १८६ शुक्लयजर्वेद में सुन्दर सींगों वाली गायों के विचरण-स्थान से व्रज का संकेत मिलता है।८७ अथर्ववेद में गोशालाओं से सम्बन्धित पूरा सूक्त ही है।" हरिवंश तथा भागवतादि पुराणों में यह शब्द गोप-वस्ती के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । ८९ स्कंध पुराण में महर्षि शांडिल्य ने व्रज शब्द का अर्थ 'व्याप्ति' बतलाते हुए इसे व्यापक ब्रह्म का रूप कहा है । १९० सूरदास आदि व्रज भाषा के भक्त-कवियों और वार्ताकारों ने भागवतादि पुराणों के अनुकरण पर मथुरा के निकटवर्ती वन्य प्रदेश की गोप-बस्ती को व्रज कहा है ।१९१ और उसे सर्वत्र मथुरा, मधुपुरी १८४. गोष्ठाघ्ननिवहा व्रजः -अमर कोश, ३।३।३० १८५. (क) गवामय व्रजं वृधि कृणुष्व राधो अद्रिवः । ---ऋग्वेद १११०७ (ख) यं त्वां जनासो अभिसंचरन्ति गाव उष्णमिव व्रज यविष्ठ । -ऋग्वेद १०।४।२ १८६. व्रजं गच्छ गोष्ठान -यजुर्वेद ११२५ १८७. याते धामान्युश्मसि गमध्ये, यत्र गावो भूरि शृङ्गा अयासः । -शुक्ल यजुर्वेद ६।३ १८८. अथर्ववेद २।२६।१ १८६. (क) तद् व्रजस्थानमधिकम् शुशुभे काननावृतम् । -हरिवंश, विष्णु पर्व ६।३० (ख) व्रजे वसन् किमकरोन् मधुपुर्यां च केशवः । -भागवत १०।१।१० १६०. वैष्णव खण्ड, भागवत माहात्म्य १११६-२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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