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________________ भौगोलिक परिचय : परिशिष्ट १ ३७१ कलिंग: कलिंग जनपद उत्तर में उड़ीसा से लेकर दक्षिण में आन्ध्र या गोदावरी के मुहाने तक विस्तृत था। काव्यमीमांसा में राजशेखर ने दक्षिण और पूर्व के सम्मिलित भप्रदेश को कलिंग कहा है। १२६ अष्टाध्यायी में पाणिनि ने भी कलिंग जनपद का उल्लेख किया है। १२७ बौद्ध साहित्य में कलिंग की राजधानी दन्तपुर बताई है। दन्तपुरी को जगन्नाथ पुरी के साथ मिलाया जा सकता है। कुम्भकारजातक में कलिंग देश के राजा का नाम करण्ड आया है और उसे विदेहराज निमि का समकालिक कहा है। कलिंगबोधि जातक के अनुसार कलिंग देश के राजकुमार ने मद्र देश के राजा की लड़की से विवाह किया था । कलिंग और बंग देश के राजाओं के साथ वैवाहिक सम्बन्ध होते थे । २८ कलिंग की राजधानी कंचनपूर (भुवनेश्वर) थी।१२९ ओघनियुक्ति के अनुसार यह जनपद एक व्यापारिक केन्द्र था, और यहां के व्यापारी व्यापारार्थ लंका आदि तक जाया करते थे । १३० खारवेल के समय कलिंग जनपद अत्यन्त समृद्ध था। खारवेल ने एक बहत् जैन सम्मेलन भी बुलाया था जिसमें भारतवर्ष में विचरण करते हुए जैन यति, तपस्वी, ऋषि और विद्वान एकत्रित हए थे । १३१ नौवीं, दशमी शताब्दी में कलिंग में बौद्ध और वैदिक प्रभाव व्याप्त हो गया था। विशेष परिचय के लिए भगवान पार्श्व देखें । १३२ १२६. काव्य मीमांसा, अध्याय १७, देशविभाग पृ० २२६ तथा परिशिष्ट २, पृ० २८२ १२७. अष्टाध्यायी ४।१।१७० १२८. बुद्धकालीन भारतीय भूगोल पृ० ४६४-४६५ १२६. वसुदेवहिण्डी, पृ० १११ १३०. ओघनियुक्ति टीका ११६ १३१. (सु) कति समणासुविहितानं (नु १) च सतदिसानं (नु) जातिनं तपसि इसिनं संधियनं (नु १) अरहतनिसीदिया समीपे पभारे वराकर समुथपिताहि अनेक योजनाहि ताहि प० सि० ओ......" सिलाहि सिंह पथरानिसि..."फुडाय निसयानि । -खरवाल शिलालेख पं० १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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