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________________ ३५४ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण भरतक्षेत्र की सीमा में उत्तर में चूलहिमवंत नामक पर्वत से पूर्व में गंगा और पश्चिम में सिन्धु नामक नदियां बहती हैं। भरतक्षेत्र के मध्य भाग में ५० योजन विस्तारवाला वैताढ्य पर्वत है ।२३ जिसके पूर्व और पश्चिम में लवणसमुद्र है। इस वैताढ्य से भरत क्षेत्र दो भागों में विभक्त हो गया है२४ जिन्हें उत्तर भरत और दक्षिण भरत कहते हैं। जो गंगा और सिन्धु नदियां चूलहिमवंतपर्वत से निकलती हैं वे वैताढ्य पर्वत में से होकर लवणसमुद्र में गिरती हैं। इस प्रकार इन नदियों के कारण, उत्तर भरत खण्ड तीन भागों में और दक्षिण भरत खण्ड भी तीन भागों में विभक्त होता है ।२५ इन छह खण्डों में उत्तरार्द्ध के तीन खण्ड अनार्य कहे जाते हैं। दक्षिण के अगल-बगल के खण्डों में भी अनार्य रहते हैं। जो मध्यखण्ड हैं उसमें २५।। देश आर्य माने गये हैं।२६ उत्तरार्द्ध भरत उत्तर से दक्षिण तक २३८ योजन ३ कला है और दक्षिणार्द्ध भरत भी २३८ योजन ३ कला है । जिनसेन के अनुसार भरत क्षेत्र में सुकोशल, अवन्ती, पुण्ड्र, अश्मक, कुरु, काशी, कलिंग, अङ्ग, बङ्ग, सुह्म, समुद्रक, काश्मीर, उशीनर, आनर्त, वत्स, पंचाल, मालव दशार्ण, कच्छ, मगध, विदर्भ, कुरुजांगल करहाट, महाराष्ट्र, सुराष्ट्र, आभीर, कोंकण, वनवास, आन्ध्र, कर्णाटक, कोशल, चोल, केरल, दास, अभिसार, सौवीर, शूरसेन, अपरान्तक, विदेह सिन्धु, गान्धार, यवन, चोदि, पल्लव, काम्बोज आरट्ट, वाल्हीक, तुरुष्क, शक, और केकय आदि देशों की रचना मानी गई है। बौद्ध साहित्य में अंग, मगध, काशी, कौशल, वज्ज, मल्ल, चेति, २१. लोकप्रकाश सर्ग १६ श्लोक ३०-३१ २२. लोकप्रकाश सर्ग १६, श्लोक ३३-३४ २३. वहीं० १६।४८ २४. वहीं० १६६३५ २५. वहीं० १६।३६ २६. (क) वहीं० १६, श्लोक ४४ (ख) वृहत्कल्पभाष्य १, ३२६३ वृत्ति, तथा १, ३२७५-३२८६ २७. आदिपुराण १६३१५२-१५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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