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________________ उपसंहार पिछले पृष्ठों में यदुवंश कौस्तुभ भगवान् अरिष्टनेमि और यदुनाथ श्रीकृष्ण के जीवन से संबंध रखने वाली, विविध धर्म परम्पराओं के साहित्य में उपलब्ध सामग्री का संकलन किया गया है और साथ ही आवश्यकतानुसार उस पर ऊहापोह भी किया गया है। ये दोनों महापुरुष भारतीय जनता में अत्यधिक प्रिय रहे हैं और उनके संबंध इतना अधिक साहित्य लिखा गया है कि उस सबका दोहन कर सकना किसी भी लेखक के लिए कठिन है, तथापि प्रस्तुत ग्रंथ में जो कुछ लिखा गया है, मैं समझता हूँ कि उससे उक्त दोनों महापुरुषों के व्यक्तित्व को भली भांति समझा जा सकता है । तीर्थंकर अरिष्टनेमि और वासुदेव श्रीकृष्ण दोनों समकालिक ही नहीं, एक वंशोद्भव और भाई-भाई हैं । दोनों अपने समय के महान् व्यक्ति हैं, मगर दोनों के जीवन की दिशाएँ भिन्न-भिन्न हैं । एक धर्मवीर हैं तो दूसरे कर्मवीर । एक निवृत्तिपरायण हैं, दूसरे प्रवृत्तिपरायण हैं । यद्यपि यह सत्य है कि जीवन, चाहे व्यक्ति का हो, समाज का हो अथवा राष्ट्र का, प्रवृत्ति - निवृत्तिमय ही होता है । एकान्त प्रवृत्ति अथवा एकान्त निवृत्ति के लिए कहीं भी अवकाश नहीं है और वह संभव भी नहीं है । तथापि हम देखते हैं कि किसी के जीवन में प्रवृत्ति की मुख्यता होती है और वह प्रवृत्ति के द्वारा लौकिक प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है, जबकि अन्य महापुरुष निवृत्ति को प्रधान बनाकर आध्यात्मिक विकास के सोपानों पर आरूढ़ होता है । ऐसा होने पर भी दोनों के जीवन में दोनों तत्व निहित रहते हैं । इस प्रकार भगवान् अरिष्टनेमि निवृत्ति प्रधान लोकोत्तर महापुरुष थे । उनके जीवन के प्रभात काल को देखने से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि उनकी अन्तरात्मा जागतिक आकर्षणों से ऊपर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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