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________________ जीवन की सांध्य-वेला जराकुमार का बाण लगना : उस समय श्रीकृष्ण को प्यास लगी। बलराम ने कहा-भाई। वृक्ष के नीचे आनन्द से बैठो। मैं अभी पानी लेकर आता है। बलभद्र पानी के लिए गए। श्रीकृष्ण एक पैर दूसरे पैर पर रखकर लेट गए। उन्हें थकावट के कारण नींद आ गई । उस समय व्याघ्र चर्म को धारण किया हुआ, जराकुमार हाथ मैं धनुष लेकर वहां आया। कृष्ण को सोया देखकर मृग के भ्रम से उसने-श्रीकृष्ण के चरण में तीक्ष्ण बाण मारा । बाण लगते ही श्रीकृष्ण उठ बैठे । उन्होंने उसी समय आवाज दी-किसने मुझे बाण मारा है ? आज दिन तक बिना नाम गोत्र बताए किसी ने प्रहार नहीं किया, बतलाओ तुम कौन हो ।२४ इस प्रकार ललकार सुनते ही जराकुमार वृक्ष की ओट में खड़ा रह कर बोला-हरिवंश रूपी सागर में चन्द्र के समान दसवें दशाह वसुदेव मेरे पिता हैं, जरादेवो मेरी माता है। बलराम और श्रीकृष्ण मेरे भाई हैं। भगवान् अरिष्टनेमि की भविष्यवाणी को सुनकर श्रीकृष्ण की रक्षा करने हेतु मैं इस जंगल में आया हूँ । इस जंगल में रहते मुझे बारह वर्ष हो गए हैं। आज तक मैंने इस वन में किसी मानव को नहीं देखा । बताओ तुम कौन हो ?२५ श्रीकृष्ण-बन्धुवर ! यहां आओ, मैं तुम्हारा भाई श्रीकृष्ण हूँ। तुम्हारा बारह वर्ष का प्रवास निरर्थक गया।' यह सुनते ही जराकुमार मूछित होकर गिर पड़ा। सुध आने पर वह पश्चात्ताप करने लगा ! क्या भगवान् अरिष्टनेमि की वाणी सत्य हो गई ! क्या द्वारिका का दहन हो गया ! मुझे धिक्कार कि मैंने भाई को बाण मारा ।२६ २४. त्रिषष्टि० ८।११ १२३-१३२ २५. जराकुमारो नाम्नाहमनुजो रामकृष्णयोः । कृष्णरक्षार्थमत्रागां श्रुत्वा श्रीनेमिनो वचः ।। अब्दानि द्वादशा भूवन्नद्यह वसतो मम । मानुषं चेह नाद्राक्षं कस्त्वमेवं ब्रवीषि भोः ।। -त्रिषष्टि० ८।११।१३४-३५ २६. त्रिषष्टि० ८।११।१३६-१४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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