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________________ जीवन के विविध प्रसंग ३२३ मारा जायगा । " किसी दिन राजा भेषज, रानी मद्री शिशुपाल और अन्य लोग श्री कृष्ण के दर्शन के लिए द्वारावती नगरी गये । वहां पर श्रीकृष्ण को देखते ही शिशुपाल का तीसरा नेत्र अदृश्य हो गया । यह देख मद्री को निमित्तज्ञानी का कथन स्मरण आया। उसने श्रीकृष्ण से याचना की — पूज्य ! मुझे पुत्र भिक्षा दीजिए।" श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया- हे अम्ब! जब तक यह सौ अपराध नहीं करेगा तब तक मैं इसे नहीं मारूंगा।' इस प्रकार कृष्ण से वरदान प्राप्त कर मद्री अपने नगर को चली गई ।" शिशुपाल का तेज धीरेधीरे सूर्य की तरह बढ़ने लगा । वह अपने आपको सर्वश्रेष्ठ समझने लगा। सिंह के समान श्रीकृष्ण के ऊपर भी आक्रमण कर उन्हें अपनी इच्छानुसार चलाने की इच्छा करने लगा ।" इस प्रकार अहंकारी, समस्त संसार में फैलने वाले यश से उपलक्षित और अपनो आयु को समर्पण करने वाले उस शिशुपाल ने श्रीकृष्ण के सौ अपराध कर डाले ।`` वह अपने आपको सबसे श्रेष्ठ समझता था । श्रीकृष्ण को भी ललकार कर उनकी लक्ष्मी छोनने को उद्यम करता था । इसी बीच रुक्मिणी का पिता रुक्मिणी को शिशुपाल को देने तैयार हुआ । युद्ध की चाह करने वाले नारद ने जब यह बात सुनी तो उसने श्रीकृष्ण को यह समाचार सुनाया । श्रीकृष्ण ने छह प्रकार की सेना के साथ जाकर उस बलवान् शिशुपाल को मारा और रुक्मिणी देवी के साथ विवाह किया । १२ ७. उत्तरपुराण ७१।३४३-३४४, ६. शतापराधपर्यन्तमन्तरेणाम्ब नास्यास्तीति हरेर्लव्धवरासौ स्वां पुरीमगात् ॥ १०. वहीं० ७१।३४६-३५१, पृ० ३६८ ११. दर्पणा यशसा विश्वसर्पिणा शतं तेनापराधानां व्यधायि १२. वहीं ० ७१।३५३ - ३५८ तक देखें । ८. वहीं ०७१।३४७ मद्भयम् 1 Jain Education International - उत्तरपुराण ७१।१४८ स्वायुरपिणा । मधुविद्विषः ॥ For Private & Personal Use Only —वहीं० ७१।३५२ www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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