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________________ ३१६ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण हो, उसके अपमान का बदला लिये बिना नहीं रह सकता । मैं अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करूंगा ! बड़े भाई के अपमान करने वाले का बदला बाद में लूगा, पहले तो गाण्डीव का अपमान करने वाले को समझता हूँ। वह गाण्डीव की प्रत्यंचा पर बारण चढ़ाकर युधिष्ठिर के सामने खड़ा हो गया। वातावरण अत्यन्त विषम हो गया। अजन का भयंकर क्रोध महान् अनर्थ कर देगा। तभी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सम्बोधित करते हुए कहा-अर्जुन, धन्यवाद ! तुम महान् क्षत्रिय हो, युधिष्ठिर का वध कर तुम्हें अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करनी चाहिए। पर खेद है, कि तुम्हें मालूम नहीं कि बड़ों का वध कैसे किया जाता है। ___अर्जुन के हाथ रुक गये। वह कुछ सोचने लगा कि तभी कृष्ण ने कहा-अपने से बड़ों का वध शस्त्र से नहीं, अपमान से किया जाता है। तुम युधिष्ठिर को अपमान जनक शब्द कहकर उनका वध कर सकते हो। ___ क्रोध के आवेग में अर्जुन ने युधिष्ठिर को गालियाँ देनी प्रारंभ की । वह मुह से अनर्गल बातें सुनाता रहा किन्तु कुछ समय में जब उसके अहं का नशा उतरा तो मन ग्लानि से भर गया, और अर्जुन के मन में इतनी ग्लानि हुई कि वह आत्मदाह करने को प्रस्तुत हो गया। उसने कहा-धर्मशास्त्रों का विधान है कि अपने गुरुजनों की हत्या करने वाला व्यक्ति अपने को जीवित ही अग्नि में होम दे। तभी वह पाप से मुक्त हो सकता है । एतदर्थ बड़े भाई का अपमान करने के कारण मैं अब अग्निस्नान करूगा । यह कह वह अग्निस्नान के लिए चलने लगा। पुनः स्थिति विकट हो गई । श्रीकृष्ण ने टूटते हुए सूत्र को फिर से संभाला- 'अर्जुन ! तुमने अपने बड़े भाई का अपमान कर महान् पाप किया है। इसका प्रायश्चित्त तुम्हें आत्म-हत्या करके करना होगा, पर आत्महत्या किसे कहते हैं यह तुम जानते हो ? ____ अर्जुन, कृष्ण की ओर टकटकी लगाता हुआ देखता रहा । श्रीकृष्ण ने स्पष्टीकरण करते हुए कहा-शस्त्र से शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देना, पानी में डूबकर मर जाना, अग्नि में जलकर अपने शरीर को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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