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________________ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण निहत्थे और युद्ध से विमुख रहने की बात सुनकर भी अर्जुन ने उन्हीं को मांग लिया | १२ २६८ दुर्योधन ने प्रसन्न होकर नारायणी सेना मांग ली । कृष्ण की विराट् सेना को पाकर और कृष्ण को युद्ध से विमुख जानकर दुर्योधन को बहुत सन्तोष हुआ । ३ श्रीकृष्ण ने एक बार अर्जुन से पूछा- तुमने मुझे युद्ध से विमुख जानकर भी क्या समझकर अपने पक्ष में लिया ? १४ उत्तर में अर्जुन ने कहा- मैं अकेला ही युद्ध में यशस्वी बनना चाहता हूँ, अतः आप ११. तव पूर्वाभिगमनात्पूर्वं चाप्यस्य दर्शनात् । साहाय्यमुभयोरेव करिष्यामि सुयोधन ! || प्रवारणं तु बालानां पूर्वं कार्यमिति श्रुतिः । तस्मात्प्रवारणं पूर्वमर्हः पार्थो धनंजयः ॥ मत्संहनन तुल्यानां गोपानाम महत् । नारायणा इति ख्याताः सर्वे संग्रामयोधिनः ॥ ते वा युधि दुराधर्षा भवत्वेकस्य सैनिकाः । अयुध्यमानः संग्रामे न्यस्तशस्त्रोऽहमेकतः ॥ आभ्यामन्यतरं पार्थ ! यत्त हृद्यतरं मतम् । तद् वृणीतां भवानग्रे प्रवार्यस्त्वं हि धर्मतः ।। - महाभारत, उद्योग पर्व, अ० ७, श्लोक १९-२० १२. एवमुक्तस्तु कृष्णेन कुंतीपुत्रो धनंजयः । अयुध्यमानं संग्रामे वरयामास केशवम् ॥ १३ दुर्योधनस्तु तत्सैन्यं सर्वमावरयत्तदा । सहस्राणां सहस्रं तु योधानां प्राप्य भारत ॥ कृष्णं चापहृतं ज्ञात्वा संप्राप परमां मुदम् । दुर्योधनस्तु तत्सैन्यं सर्वमादाय पार्थिवः ॥ Jain Education International १४. महाभारत, उद्योग पर्व अ० ७, श्लोक ३४-३५ - महाभारत, उद्योग पर्व अ० ७, श्लो० २३-२४ प्रकाशक - महावीर प्रिंटिंग प्रेस लाहौर - वहीं श्लोक २१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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