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________________ जरासंध का युद्ध २६१ विजय पताका फहरा कर वहां आये। जरासंध के पूत्र सहदेव ने जरासंध का अग्निसंस्कार किया। जीवयशा ने अपने पिता की मृत्यु जानकर अग्नि में प्रवेश कर अपने जीवन को समाप्त किया ।२५ यादवों ने उसका उत्सव मनाया। उस स्थान का नाम सिनपल्ली के स्थान पर आनन्दपुर रखा ।२६ श्रीकृष्ण ने कुछ समय में तीन खण्ड की साधना की और सर्वत्र विजय वैजयन्ती लहरा कर द्वारिका आये। वहां पर आनन्दपूर्वक रहकर तीन खण्ड का राज्य करने लगे ।२७ महाभारत में जरासंध युद्ध वर्णन : जैन साहित्य में जैसा जरासंध युद्ध का वर्णन मिलता है, वैसा महाभारत में नहीं है। वह बिल्कुल ही पृथक् ढंग का है । वह वर्णन इस प्रकार है महाभारत के अनुसार भी जरासंध एक महान पराक्रमी सम्राट था। उसका एकच्छत्र साम्राज्य था। जब कृष्ण ने कंस को मार डाला और जरासंध की कन्या विधवा हो गई तब श्रीकृष्ण के साथ जरासंध की शत्र ता हो गई। जरासंध ने वैर का बदला लेने के लिए अपनी राजधानी से ही एक बड़ी भारी गदा निन्यानवे बार घुमाकर जोर से फेंकी। वह गदा निन्यानवे योजन दूर मथुरा के पास गिरी। २५. पत्युः पितुश्च संहारं सकुलस्यापि वीक्ष्य सा। स्वजीवितं जीवयशा जहौ ज्वलनसाधनात् ।।२६।। २६. (क) चुस्कुन्दिरे यथानन्दं यदवस्तज्जनार्दनः । तत्रानन्दपुरं चक्रे सिनपल्लीपदे पुरम् ॥२७॥ -त्रिषष्टि ८ । ८। (ख) आनन्दं ननृतुर्यत्र यादवा मागधे हते ।। आनन्दपुरमित्यासीत्तत्र जैनालयाकुलम् ।। -हरिवंशपुराण ५३ । ३० । ६०६ २७. (क) त्रिषष्टि ८ । ८ । २८ (ख) हरिवंशपुराण ५३ । ४१-४२ । पृ० ६०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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