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________________ २५८ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण हजारों बाणों की वृष्टि की। उन बाणों की वृष्टि ने किसी के रथ, किसी के मुकुट, किसी की ध्वजा छेद दी, किन्तु किसी भी शत्र की शक्ति अरिष्टनेमि के सामने युद्ध करने को नहीं हुई। प्रतिवासुदेव को वासूदेव ही नष्ट करता है, यह एक मर्यादा थी। अतः अरिष्टनेमि ने जरासंध को मारा नहीं।१५ अपितू जरासंध के सैनिक दल को कुछ समय तक रोक दिया। तब तक बलदेव और श्रीकृष्ण स्वस्थ होगये । यादव सेना भी पुनः लड़ने को तैयार होगई। जरासंध ने पूनः युद्ध के मैदान में आते ही कृष्ण से कहा-अरे कृष्ण ! तू कपट मूर्ति है । आज दिन तक तू कपट से जीवित रहा है, पर आज मैं तुझे छोड़नेवाला नही हूँ। तुने कपट से ही कंस को मारा है, कपट से ही कालकुमार को मारा है। तूने अस्त्र-विद्या का तो कभी अभ्यास ही नहीं किया है। पर आज तेरी माया का अन्त लाऊँगा और मेरी पुत्री जीवयशा की प्रतिज्ञा पूर्ण करूंगा।१६ कृष्ण ने मुस्कराते हुए कहा-- अरे जरासंध ! तू इस प्रकार वृथा अहंकार के वचन किसलिए बोलता है ? वाक्चातुर्य न दिखाकर शक्ति दिखा। मैं शस्त्रविद्या भले नहीं सीखा तथापि तुम्हारी पत्री जीवयशा की अग्नि प्रवेश की प्रतिज्ञा को मैं अवश्य पूर्ण करूंगा।" जरासंध की मृत्यु : फिर दोनों युद्ध के मैदान में ऐसे कूदे कि देखने वाले अवाक् रह गये । उनकी आँखें ठगी सी रह गई । धनुष की टंकार से आकाश गूजने लगा। पर्वत भी मानों कांपने लगे । जरासंध बाणों की वर्षा करने लगा पर श्रीकृष्ण उन सभी बारणों का भेदन छेदन करने १५. प्रतिविष्णुविष्णुनैव वध्य इत्यनुपालयन् । स्वामी त्रैलोक्यनाथोऽपि जरासंधं जघान न । -त्रिषष्टि ८ । ७ । ४३२ १६. तव प्राणैः सहैवाद्य माया पर्यंतयाम्यरे ! एषोऽद्य जीवयशसः प्रतिज्ञां पूरयामि च ॥ -त्रिषष्टि ८ । ७ । ४३६-४३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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