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________________ द्वारिका में श्रीकृष्ण २४७ अवसर पर ही मेरी पुत्री और तुम्हारी पुत्रवधू को कोई अपहरण कर ले गया है ? कृष्ण ने कहा-मैं क्या करूं-प्रद्य म्न का भी सोलह वर्ष तक विरह सहन किया है ? मैं कोई सर्वज्ञ थोड़े ही हूँ। प्रद्य म्न ने कहा-आप आदेश, दें तो मैं प्रज्ञप्ति विद्या से उस कन्या को शीघ्र ही यहां ले आऊ । ऐसा कहकर उसने उसी समय कन्या उपस्थित की और भानु के साथ उसका पाणिग्रहण करवा दिया ।७ प्रद्य म्न को कृष्ण ने अनेक राजकन्याएं परणाई।७४ प्रद्य म्न का वैदर्भी से विवाह : ___ श्रीकृष्ण की दूसरी पत्नी जाम्बवती के शांब नामक महापराक्रमी पत्र हुआ। वह प्रद्य म्न के समान वीर था। सत्यभामा के दूसरा पुत्र भानुककुमार हुआ, पर स्वभाव से वह कायर था। एक दिन रुक्मिणी के अन्तर्मानस में विचार आया कि मेरे भाई रुक्मि की पत्री वैदर्भी रूप में अत्यन्त सुन्दर है। यदि उसके साथ मेरे पुत्र प्रद्युम्न का पाणिग्रहण हो तो कितना सुन्दर रहे । उस युग में मामा की पुत्री के साथ विवाह करने की परम्परा थी, और उस विवाह को उचित माना जाता था। उसने एक दूत को अपने भाई वे. पास भेजा। रुक्मि ने स्पष्ट इन्कार करते हुए कहा-'मैं अपनी पुत्री वैदर्भी को चाण्डाल को देना पसन्द करता हूँ पर कृष्ण वासुदेव के कुल में देना योग्य नहीं समझता।' ____ जब यह समाचार दूत ने रुक्मिणी को कहा तो उसे बहुत ही पश्चात्ताप हुआ कि मैंने सन्देश भेजकर उचित नही किया। भाई के अपमान से रुक्मिणी का मुख म्लान हो गया। प्रद्य म्नकुमार ने ७३. त्रिषष्टि० ८७१-५ ७१. (क) त्रिषष्टि० ८७१६-७ (ख) कण्हेण वि अणिच्छंतो वि परं पीइमुव्वहंतेण विज्जाहर धरणिगोयरपत्थिवकण्णाणं सरिसजोव्वणगुणाणं पाणिं गाहिओ पासायगतो दोगुदुगदेवो इव भोए भुजमाणो निरुव्विग्गो विहरइ। -वसुदेवहिण्डी पृ० ९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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