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________________ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण बलराम को गोकुल भेजना : वसुदेव ने जब ये सभी घटनाएं सुनी तो उन्हें भय लगा कि कंस कृष्ण के पराक्रम को जानकर और उसे पहचान कर कहीं उसका अनिष्ट न कर डाले । एतदर्थ उन्होंने शौर्यपूर से अपने बड़े लड़के बलराम को कृष्ण की सहायता के लिए बुलाया और उसे सारा रहस्य समझाकर नन्द और यशोदा को पुत्र रूप में अर्पित किया। बलराम से श्रीकृष्ण ने धनुर्विद्या व अन्य युद्ध कलाएँ आदि सीखीं ।२२ श्रीकृष्ण के रूप, शौर्य और गुणों पर गोकुलवासी अत्यन्त मुग्ध हो गये। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने गोकुल में आनन्दपूर्वक रहते हुए ग्यारह वर्ष पूर्ण किये ।२३ निमित्तज्ञ का कथन : एक दिन कंस घूमता-घामता देवकी के भवन में जा पहु चा। उस समय छेदी हुई नासिका वाली लड़की को देखकर अपने लघुभ्राता अतिमुक्त मुनि की भविष्यवाणी उसे स्मरण हो आयी। उसने उसी समय सभा में जाकर किसी विशिष्ट निमित्तज्ञ को बुलाया और प्रश्न किया-बताओ, मुनि की यह भविष्यवाणी कि 'देवकी का सातवां गर्भ मुझे मारेगा, क्या सत्य है या मिथ्या है ?२४ २१. श्रीगद्भागवत १०।१०।१ से ४३, पृ० २५६-२६३ २२. (क) त्रिषष्टि० ८।५।१४६ से १५३ (ख) हरिवंशपुराण ३५॥६४, पृ० ४५६ (ग) भव-भावना २२१७-२२१६ २३. एवं च क्रीडतास्तत्र गोपयो रामकृष्णयोः । एकादश समा जग्मुः सुषमाकालवत् सुखम् ॥ -त्रिषष्टि० ८।५।१६६ २४. (क) वसुदेवगृहेऽन्येा र्देवकी द्रष्टुमागतः । तां छिन्नैकघ्राणपुटां कंसः कन्यामुदैक्षत ।। भीतोऽथ कंसो वेश्मैत्यापृच्छन्नैमित्तिकोत्तमम् । सप्तमाद्देवकीगर्भान्मुनिनोक्तं वृथाथ न । -त्रिषष्टि० ८.५२००।२०१ (ख) भव-भावना २३४७ से २३५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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