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________________ कंस : एक परिचय १८६ सोरियपुर के राजा समुद्रविजय को आदेश दिया कि वह सिंह राजा को पकडकर लावे। जो सिंह राजा को पकड़कर लायेगा उसके साथ मैं अपनी पुत्री जीवयशा का विवाह करूगा । और राज्य भी दूंगा। समुद्रविजय युद्ध के लिए जाने लगे, पर वसुदेव ने कहामैं जाऊंगा, वसूदेव गये और सिंह राजा को परास्त कर विजयपताका फहराकर घर पर आये । वसूदेव को एकान्त में ले जाकर समुद्रविजय ने कहा -- मुझे एक विशिष्ट निमित्तज्ञ कोष्टकं ने बताया है कि जरासंध की पुत्री जीवयशा कनिष्ठ लक्षणों वाली है। वह पति और पिता के दोनों ही कुलों को कलंकित व क्षय करेगी, अतः तुम उसका पाणिग्रहरण मत करना । जीवयशा का पाणिग्रहण तुम्हारे अनुचार कंस के साथ करा दिया जाय । समुद्रविजय जी ने कंस के वंश का पता लगाया। सुभद्र श्रेष्ठी से मुद्रिका और जन्मपत्री साथ लेकर जरासंध के दरबार में गये । जरासंध ने पूछा-सिंह राजा को किसने पकड़ा ? समुद्रविजय ने कंस का नाम लिया और कंस के साथ जीवयशा का पाणिग्रहण हो गया। कंस समुद्रविजय और वसुदेव पर बहुत ही प्रसन्न हुआ और अपने पिता उग्रसेन पर अत्यन्त ऋद्ध । जरासंध की सेना लेकर कंस मथुरा आया, राजा उग्रसेन को जो उसके पिता थे, बन्दी बनाकर स्वयं मथुरा का राजा बन गया। उग्रसेन के अतिमुक्त आदि अन्य पुत्र भी थे । अतिमुक्तक को पिता की दुर्दशा देख, वैराग्य उत्पन्न हुआ और दीक्षा ग्रहण की। ६. त्रिषष्टि० ८।२।१२।८४ ७. वहीं० ८।२।८५-६५ ८. वसुदेवं रहस्यूचे समुद्रविजयो नृपः । यज्ज्ञानी क्रोष्टुकिनामाचख्यौ मम हितं ह्यदः ।। जरासंधस्य कन्येयं नाम्ना जीवयशा इतिः । अलक्षणा पतिपितृकुलक्षयकरी खलु । -त्रिषष्टि० ८।२।६५-६६ ६. जरासंधापितबलो मथुरायामुपेत्य च । कंसो नृशंसः पितरं बद्धवा चिक्षेप पंजरे । -त्रिषष्टि० ८।२।१०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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