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________________ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण कंस का वध द्वारिका नगरी का निर्माण, कृष्ण की अग्रमहिषियाँ, प्रद्युम्न का जन्म, जरासंध के साथ युद्ध, नेमिनाथ और राजीमती के साथ विवाह की चर्चा आदि सभी विषय आए हैं। इनके अतिरिक्त भी अनेक रचनाएं हैं। संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य : ___ जैन लेखकों ने प्राकृत और अपभ्रंश भाषा में ही नहीं संस्कृत भाषा में भी विपूल कष्ण साहित्य लिखा है। संस्कत साहित्य के लेखक श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्परा के विद्वान रहे हैं। हरिवंश पुराण२०- इसके रचयिता दिगम्बर आचार्य जिनसेन हैं। इस में ६६ सर्ग हैं और १२ हजार श्लोक हैं । ३२ वें सर्ग में कृष्ण के बड़े भाई बलदेव का वर्णन है। पैंतीसवें सर्ग में कृष्ण जन्म से लेकर अन्तिम सर्ग तक श्री कृष्ण के जीवन के विविध प्रसंग विस्तार के साथ लिखे गये हैं जैसे-कालियामर्दन, कंसवध, उग्रसेन की मुक्ति, सत्यभामा से विवाह, जरासंध के पुत्र का वध, जरासंध के भय से मथुरा से प्रस्थान, द्वारकानिर्माण, रुक्मिणी का विवाह, शिशुपालवध, प्रद्युम्न का जन्म, जाम्बवती का विवाह, जरासंध वध, कृष्ण की दक्षिण भारत विजय, कृष्ण की रानियों के पूर्व भव, द्वीपायन का क्रोध द्वारिका विनाश, बलदेव श्रीकृष्ण का दक्षिण गमन, कृष्णामरण, बलदेव विलाप, बलदेव की जिन दीक्षा । । उत्तरपुराण२१-इसके लेखक गुणभद्र हैं। उन्होंने ७१, ७२, ७३वें पर्व में कृष्ण कथा का उल्लेख किया है। हरिवंशपुराण की अपेक्षा इस में कथा बहुत ही संक्षिप्त है। । हरिवंशपुराण और उत्तरपुराण को आधार बनाकर अन्य दिगम्बर विद्वानों ने श्रीकृष्ण पर लिखा है। द्विसंधान या राघवपाण्डवीय महाकाव्य-इसके रचयिता धनंजय हैं। इसमें १८ सर्ग हैं। इसके प्रत्येक पद्य से दो अर्थ प्रकट होते हैं २०. श्री पं० पन्नालाल जैन साहित्याचार्य द्वारा सम्पादित और भारतीय ज्ञानपीठ काशी द्वारा सन् १९६२ में प्रकाशित । २१. पं० पन्नालाल जैन, साहित्याचार्य द्वारा सम्पादित, भारतीय ज्ञान पीठ काशी द्वारा प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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