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________________ तीर्थकर जीवन १५७ पूर्वधारी, ग्यारह हजार आठ सौ शिक्षक (उपाध्याय) पन्द्रह सौ अवधिज्ञानी, पन्द्रह सौ केवलज्ञानी, नौ सौ विपुलमति मनः पर्यवज्ञानी, आठ सौ वादी, और ग्यारह सौ वैक्रिय ऋद्धि के धारक मुनिराज थे ।१४८ राजीमती को साथ लेकर चालीस हजार आर्यिकाए एक लाख उनहत्तर हजार श्रावक, तथा सम्यग्दर्शन से शुद्ध श्रावक के व्रत धारण करने वाली तीन लाख छत्तीस हजार श्राविकाए वहाँ विद्यमान थी।१४६ १४८. चतुःशतानि तत्रान्ये मान्याः पूर्वधराः सताम् । एकादशसहस्राष्टशतसंख्यास्तु शिक्षकाः ॥ शतान्यवधिनेत्रास्तु केवलज्ञानिनोऽपि च । ते पंचदशसंख्यानाः प्रत्येकमुपवणिताः ॥ मत्या विपुलया युक्ता शतानि नव संख्यया । वादिनोऽष्टौ शतानि स्युरेकादश तु वैक्रिया ।। -वहीं० ५६।१२८-३० पृ० ७।५ १६. चत्वारिंशत्सहस्राणि, राजीमत्या सहायिका । लक्षैकैकोनसप्तत्या सहस्रः श्रावका स्मृताः । पत्रिंशच्च सहस्राणि लक्षाणां त्रितयं तथा । सम्यग्दर्शनसंशुद्धाः श्राविकाः श्रावकव्रताः ।। -हरिवंशपुराण ५६।१३१-१३२, पृ० ७०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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