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________________ १५४ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण ___मल्लधारी आचार्य हेमचन्द्र ने भी भव-भावना में विहार का वर्णन निम्न प्रकार किया है । ' ४० ___ आचार्य जिनसेन ने लिखा है कि भगवान् अरिष्टनेमि ने भव्य जीवों को सम्बोधन देने हेतु जगत् के वैभव के लिए पृथ्वी पर विहार किया। भगवान् ने सुराष्ट्र, मत्स्य, लाट, विशाल, शूरसेन, पटच्चर, कुरुजांगल, पाञ्चाल, कुशाग्र, मगध, अञ्जन, अङ्ग, बंग, तथा कलिंग आदि नाना देशों में विहार करते हुए क्षत्रिय आदि वर्गों को जैन धर्म में दीक्षित किया । १४१ १३८. अतीत का अनावरण पृ० १४६ १३६. इतश्च मध्यदेशादौ विहृत्य परमेश्वरः । उदीच्यां राजपुरादिपुरेषु व्यहरत् प्रभुः ।। शैले ह्रीमति गत्वा च म्लेच्छदेशेष्वनेकशः । विहरन् पार्थिवामात्य प्रभृतीन प्रत्यबोधयत् ।। आर्यानार्येषु विहृत्य भूयो ह्रीमत्यगाद्विभुः । ततः किरातदेशेषु व्याहार्षीद्विश्वमोहहृत् ।। उत्तीर्य ह्रीमत: शैलाद्विजह्न दक्षिणापथे । भव्यारविन्दखंडानि बोधयन्नंशुमानिव ॥ आरभ्य केवलादेवं भर्तु विहरतोऽभवन् । निर्वाणसमयं ज्ञात्वा ययौ रैवतके प्रभः ।। ___ --त्रिषष्टि० पर्व ८, सर्ग १२, श्लोक ६६ से १०५ १४०. भयवं पि मज्झ देसे नाणाविहजणवएस गंतूण । विहरइ उत्तरदेसे रायपुराई नय रेसु ।। हिरिमंतनगं गंतु विहरइ बहुएस मेच्छदेसेसु । नरनाहअमच्चाइ ठावंतो धम्ममग्गम्मि ।। आरियमणारिएसु इय विहरेउण बहुयदेसेसु । हिरिमंतमुवेइ पुणो रांगाजलखालियसिलोहं ।। विहरइ किरायदेसे हिरिमंतनगाउ तो समुत्तरिउ। विहरइ दाहिणदेसे बोहेंतो भव्वकमलाई ।। -भव-भावना, गा० ४०१० से ४०१३ पृ० २६४-६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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