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________________ १४४ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण दिगम्बर ग्रन्थों में : आचार्य जिनसेन के अनुसार जरत्कुमार के द्वारा श्रीकृष्ण के निधन के समाचार जब पाण्डवों को प्राप्त होते हैं तब पाण्डव माता कुन्ती और द्रौपदी के साथ जरत्कुमार को लेकर जहाँ बलभद्र थे वहां आये। दोनों का मधुर-मिलन हआ ।९५ पाण्डवों ने श्रीकृष्ण के दाह संस्कार हेतु बलभद्र से निवेदन किया किन्तु जैसे बालक विषफल को न देकर उलटा कुपित होता है वैसे ही बलभद्र कुपित हुए। अन्त में बलभद्र की इच्छानुसार पाण्डव चलने लगे । वर्षावास का समय व्यतीत किया। पहले श्रीकृष्ण के शरीर में सप्तपर्ण के समान सुगंध आती थी अब दुर्गन्ध आने लगी। तब सिद्धार्थ देव आकर पूर्वकथानुसार प्रतिबोध देता है ।१९ ____ शुभचन्द्राचार्य रचित पाण्डव पुराण के अनुसार पहले सिद्धार्थ देव आकर प्रतिबोध देता है पर वे प्रतिबुद्ध नहीं हुए। अंत में पाण्डव आते हैं, धीरे-धीरे प्रेम से समझाते हैं तब बलभद्र का मोह कम होता है और श्रीकृष्ण का अग्नि संस्कार होता है।०० शेष कथानक सभी श्वेताम्बर और दिगम्बर ग्रन्थों में एक समान है। पाण्डवों की दीक्षा और मुक्ति : भगवान् अरिष्टनेमि ने पाँच पाण्डवों और सती द्रौपदी को प्रतिबोध देने हेतु अपने शिष्य धर्मघोष नामक स्थविर को पाँच सौ (ग) कथाकोशप्रकरण १७ जिनेश्वरसूरि ६५. ते कियद्भिरपि वासरै तं द्रौपदीप्रभृतिभामिनीजनैः । मातृपुत्रसहिताः ससाधनाः प्राप्य तं ददृशुराहता वने ।। व्यथिकाः शवशरीरगोचरोद्वर्तनस्नपनमण्डनक्रियाः । वर्तयन्तमुपगृह्य तं चिरं बांधवा रुरुदुरुच्चकैः स्वनाः ।। ।६३१५४-५५ ६६. वहीं० ६३१५६, पृ० ७७६ ६७ निन्युरित्थमनुवृत्तितस्तु ते तत्र मेघसमयं बलानुगाः । मोहमेघपटलं बलस्य वा भेत्त माविरभवत्तदाशरत् ।। -वहीं० ६३।५६, पृ० ७७६ ६८. वहीं० ६३।६०, पृ० ७७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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