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________________ तीर्थकर जीवन १३३ श्रीकृष्ण ने अपनी बात का स्पष्टीकरण करते हुए कहा-देखो, त्याग का मार्ग स्वामी बनने का मार्ग है और भोग का मार्ग दासी बनने का । त्यागी के चरणों में सम्राट् झुकते हैं क्योंकि वह षट्काय का स्वामी है, नाथ है । तुमने बहुत सुन्दर विचार किया है । तुम्हारे ये विचार, तुम्हारे कुल के अनुकूल हैं। अतः मैं आदेश देता हैं कि स्वामिनी बनने के लिए भगवान् अरिष्टनेमि के पास प्रव्रज्या ग्रहण करो।" __ श्रीकृष्ण के आदेश को स्वीकार कर सभी ने त्याग मार्ग ग्रहण किया । .. श्रीकृष्ण के यहाँ जो भी विवाह योग्य कन्याएं होतीं उन सभी से श्रीकृष्ण वही प्रश्न करते । त्याग-मार्ग का महत्त्व बताकर उन्हें त्यागमार्ग ग्रहरण कराते । अपने पुत्रों और पुत्रियों को त्यागमार्ग में प्रविष्ट देखकर श्रीकृष्ण अत्यन्त प्रसन्न होते । केतुमंजरी को प्रतिबोध : ... एक दिन एक महारानी ने अपनी पुत्री को सिखलाया कि पिता जी जब तुम्हें रानी या दासी बनने के लिए पूछे तब स्पष्ट शब्दों में कहना कि मुझे रानी नहीं, दासी बनना है।" उस पुत्री का नाम केतुमंजरी था। श्रीकृष्ण ने एक दिन उससे पूछा-बेटी, तुम क्या बनना चाहती हो दासी, या रानी ? उसने माता के कहे अनुसार कह दिया-पिताजी, मुझे दासी बनना है रानी नहीं। पुत्री की बात सुनकर श्रीकृष्ण विचारने लगे-यह विचित्र लड़की है, जो दासी बनना पसन्द करती है। यदि मैंने शिक्षा न देकर इसका पाणिग्रहण किसी राजा आदि के साथ करा दिया तो अन्य सन्तान भी इसी का अनुसरण करेंगी। भोग का मार्ग ढलान का मार्ग है। हर किसी का पैर फिसल सकता है। एतदर्थ ऐसा उपाय करू जिससे भविष्य में मेरी कोई भी सन्तान विषय-भोग के कीचड़ में न फंसे। ६. त्रिषष्टि० ८।१०।२१५-२१६ १७. पृष्टा तातेन वत्से त्वं भाषेथा अविशंकितम् । अहं दासीभविष्यामि न पुनः स्वामिनी प्रभो॥ -त्रिषष्टि० ८।१०।२१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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