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________________ १२८ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण माता कुछ क्षणों तक मौन रही । पुत्र के मुखड़े को निहारती रही, उसकी जिज्ञासाओं को समझने का प्रयास करने लगी। थावच्चापुत्र ने पुनः कहा-'मां ! सत्य बता न ! क्या एक दिन मैं भी मरूगा?' ___ माता की आँखों से अश्रु छलक पड़े । उसने कहा-वत्स ! सभी को मरना पड़ता है। इस विश्व में ऐसा कोई प्राणी नहीं जो न मरे । जो जन्मता है वह एक दिन अवश्य ही मरता है । जो सूर्य उदित होता है, वह अवश्य ही अस्त होता है, जो फूल खिलता है वह अवश्य ही मुरझाता है। जन्म ले किन्तु मरे नहीं, यह असंभव है।' ____ 'माता ! ऐसा कोई उपाय है कि मैं मरू और तुम्हें दुःख न हो, तुम्हें आंसू न बहाने पड़ें ?' ____माता ने जरा डांटते हुए कहा- 'मेरे सलोने बेटे ! ऐसी बातें नहीं किया करते ! तुम्हारी ऐसी बातों को सुनकर मेरे को व्यथा होती है।' __थावच्चापुत्र माता के मना करने से चुप हो गया, पर उसके अन्तर्मानस में वह प्रश्न सदा उद्बुद्ध होता रहा कि मानव क्यों मरता है ? ऐसा कौन-सा उपाय है जिससे मानव अमर हो जाए ? अमर बनने की लालसा उस में उत्तरोत्तर बलवती बनती गई। थावच्चापत्र अब बालक से युवा हो गया, बत्तीस रूपवती रमणियों के साथ उसका पाणिग्रहण भी हो गया। सभी प्रकार की सुखसुविधाए प्राप्त होने पर भी उसका मन किसी अज्ञात की खोज में रहता। एक बार भगवान् अरिष्टनेमि के उपदेश को सुनते ही वह जागृत हो गया ।६ थावच्चापुत्र की दीक्षा : एक बार अरिष्टनेमि द्वारवती नगरी में पधारे । श्रीकृष्ण ने उद्घोषणा करवाई । सहस्रों व्यक्तियों के साथ गंधहस्ती पर आरूढ़ हो श्रीकृष्ण भगवान् को वन्दन करने के लिए गये । भगवान के उपदेश को श्रवण कर थावच्चापूत्र प्रव्रज्या लेने के लिए प्रस्तुत हुआ। थावच्चापुत्र की माता अभिनिष्क्रमण ७६. थावच्चापुत्र रास-मुनि जीवराजजी कृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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