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________________ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण थावच्चापुत्र : ज्ञातासूत्र में थावच्चापुत्र की दीक्षा महोत्सव का ही वर्णन है किन्तु मुनि श्री जीवराज जी ने थावच्चापुत्र-रास में उसके जीवन के एक प्रसंग का उल्लेख किया है जो इस प्रकार है__ थावच्चापुत्र का असली नाम क्या था यह इतिहासकारों को भी ज्ञात नहीं है। उसकी माता का नाम थावच्चा था, इस कारण माता के नाम पर वह थावच्चा पुत्र के नाम से ही विश्रुत हो गया। थावच्चापुत्र बाल्यकाल से ही चिन्तनशील था । उसका गुलाबी बचपन खेल-खिलौनों की भूल-भुलैया में भ्रमित नहीं था, अपितु विलक्षण था । वह जो भी देखता-सूनता, उसके सम्बन्ध में उसके अन्तर्मानस में अनेकों प्रश्न उठते और वह वस्तुस्थिति के अन्तस्तल तक पहुँचने का प्रयास करता । जब तक वह सही वस्तु-स्थिति नहीं समझ लेता तब तक उसे चैन नहीं पड़ता। ___एक समय थावच्चापुत्र अपने भव्य भवन की सातवीं मंजिल पर खड़ा होकर नगर की शोभा को निहार रहा था। प्रातःकाल का सुनहरा समय था। सहस्ररश्मि सूर्य की उजली धूप चारों ओर बिखर रही थी। इधर-उधर बिखरे हुए मेघखण्ड अपनी अनोखी आभा से दर्शकों के दिल को लुभा रहे थे। रंग-बिरंगे पक्षी दाना-पानी की तलाश में उड़े जा रहे थे। बड़ा ही मनमोहक दृश्य था। थावच्चापुत्र मस्ती में झूमता हुआ सारा दृश्य देख रहा था। उसी समय पड़ौसी के घर में से मंगल-गीतों की मधुरध्वनि सूनाई दी। गीतों की मधुरता और मोहकता ने थावच्चापुत्र को अपनी ओर आकर्षित किया। वह एकाग्रता से गीतों को सुनने लगा, पर गीत क्यों गाये जा रहे हैं, इन गीतों का क्या अर्थ है, वह नहीं समझ पा रहा था। उसके मन में जिज्ञासा जागृत हुई । नीचे उतरकर उसने माता से पूछा-'माँ, पड़ोस में इतने सुन्दर और मधुर गीत किसलिए गाये जा रहे हैं ?' माता ने पुत्र के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- 'बेटा ! अपनी पड़ौसिन ने आज चिरकाल के पश्चात् पुत्र का प्रसव किया है। पुत्र जन्म की प्रसन्नता में ये गीत गाये जा रहे हैं।' _ 'माता ! क्या मेरे जन्म के समय भी इसी प्रकार गीत गाये गए थे ?' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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